छत्तीसगढ़: जल, जंगल, जमीन अऊ हमर चिनहारी के लड़ाई

अंजोर
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​छत्तीसगढ़ महतारी के कोरा हर सदा ले धन-धान्य अउ प्रकृति ले भरे-पूरे हावे। फेर आज के बेरा में हमर प्रदेस एक अइसन मोड़ में खड़े हावे, जिहां 'जल, जंगल अउ जमीन' ला बचाना हमर बर सबले बड़े चुनौती बन गे हावे। एक कोती शासन अउ प्रशासन अपन पीठ थपथपावत हे, त दूसर कोती गांव-गंवाई के मनखे मन अपन हक बर सड़क में उतरे बर मजबूर हें।

नक्सलवाद के खात्मा अउ पूंजीपति मन के नजर

​बस्तर के घने जंगल मन में कतको बछर ले नक्सली मन के राज रहिस। ये बात सच आय कि ओकर मन के सेती स्कूल, अस्पताल अउ सड़क जइसन मूलभत सुबिधा मन अंदरूनी इलाका तक नहीं पहुंच पाइस। फेर एक बात अउ सच रहिस- ओकर डर के मारे बड़े-बड़े पूंजीपति अउ जंगल ला उजाड़े वाले मन घलो ओती जाये बर डरावत रहिन।

​आज जब नक्सलवाद दम तोड़त हे, कतको बड़े नेता मन आत्म-समरपन कर डारिन हें, त अइसन लागत हे कि अब बस्तर के अउ छत्तीसगढ़ के कीमती जमीन ला पूंजीपति मन के हाथ में सौंपे के रस्ता साफ हो गे हावे। सरकार ह जनता के आवाज ला सुने के बजाय ओला राजनीति के रंग देवत हे। जब लोगन मन अपन जंगल बचाए बर अवाज उठाथें, त ओला दूसर दल के साजिस बता के दबा दिए जाथे। जादा होही त नक्सली बताके जेल म ठूस देही, राजद्रोही बता देही।

परप्रांतीय मन के दबदबा अउ छत्तीसगढ़ियावाद

​सिरिफ जंगल अउ जमीन के बात नोहे, अब त शहर मन में घलो 'छत्तीसगढ़ियावाद' के लहर जोर धरत हे। हमर छत्तीसगढ़ के मनखे मन सिधवा अउ सोझ होथें। हमन बाहर ले आए मनखे ला घलो 'अतिथि देवो भव:' मान के आसरा देथन। फेर आज देखिया जाय त उही मनखे मन आज इहां के ताकतवर पद मन में बइठ के हमर ही भाई-बहिनी मन ला दबावत हें।

"छत्तीसगढ़ के रोजी-रोजगार, संपदा में छत्तीसगढ़िया मन के अधिकार पहली होना चाहिए।"


​आज हालत अइसन हो गे हे कि जेन मनखे छत्तीसगढ़ी भाखा, इहां के संस्कृति अउ इहां के हक के बात करथे, ओला 'बाहरी' सत्ता में बइठे मनखे मन कुचले के कोसिस करथें। स्थानीय बनाम परप्रांतीय के ये लड़ाई अब सिरिफ भाखा तक सीमित नहीं हे, ये हमर रोजगार अउ अस्मिता के लड़ाई बन गे हावे।

जनप्रतिनिधि मन के चुप्पी

​सबले दुख के बात ये हे कि हमर चुने हुए जनप्रतिनिधि मन अपन 'कुर्सी' बचाए के चक्कर में जनता के मुद्दा ले मुुंहु मोड़ ले हें। जनता करा अब सोशल मीडिया ही एक अइसन मंच बांचे हे, जिहां वो अपन मन के पीरा ला निकाल सकत हे। बस्तर ले लेके सरगुजा तक, हसदेव ले लेके बैलाडीला तक, हर जगह 'हक' के लड़ाई जारी हे।

​अब जागना जरूरी हे

​छत्तीसगढ़ के जल, जंगल अउ जमीन सिरिफ संसाधन नोहे, ये हमर पुरखा मन के अमानत आय। यदि आज हमन अपन स्वार्थ बर या डर के मारे चुप रहिबो, त आने वाली पीढ़ी ला हमन का देबो?

  • एकजुटता: हम छत्तीसगढ़िया मन ला अपन भेद-भाव भुला के एक होना पड़ही।
  • हक के आवाज: परप्रांतीय मन के वर्चस्व ला कम करे बर स्थानीय युवा मन ला हर छेत्र में आगे आना पड़ही।
  • सजगता: सरकार के हर ओ नीति के विरोध करना पड़ही जेन हमर जंगल अउ जमीन ला पूंजीपति मन ला सौंपे के रस्ता बनाथे।

"जय जोहार, जय छत्तीसगढ़!"

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सबो पाठक ल जोहार..,
हमर बेवसाइट म ठेठ छत्तीसगढ़ी के बजाए रइपुरिहा भासा के उपयोग करे हाबन, जेकर ल आन मन तको हमर भाखा ल आसानी ले समझ सके...
छत्तीसगढ़ी म समाचार परोसे के ये उदीम कइसे लागिस, अपन बिचार जरूर लिखव।
महतारी भाखा के सम्मान म- पढ़बो, लिखबो, बोलबो अउ बगराबोन छत्तीसगढ़ी।

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