बीज भात : आशुतोष तिवारी के छत्तीसगढ़ी कहानी

अंजोर
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अदरा लग गए हे आऊ ए हमर टूरा हे जेला कूछु चेत नीये, अगा हरना सुनत हस, ईती आ देखबे सब झन के कोला जोता गए, एक ठन हमरेच कोला ह बहाच गे हे। कब जोतबे हमर कोला ला। थोरकिन रुक न ओ दाई, हमर नांगर ल छेडू लेगे हे अपन कोला जोते बर।
हत रे रोगहा हमर अपन कोला जोताए निये फेर छेडू ल तै काबर नांगर देहे बड दानबिर करन बने हस, तोर बबा के नांगर आय न छोड़ के गे रहिस तोर बबा ह। एक ठन बैला गरवा तो रहिस निही तुमन मेर, मोर दाइज म आइस नांगर बैला अउ गाडा तभे तो तुमन पाया रे, नीतो तुमन मेर रहिस का। पर के बैला नांगर म खेत जोते तोर बबा, मंगनी के गाडा बौरे ह त तुमन के खेती होय। अउ अब तै अतके रोठ होगे रे, मोर मइके के नांगर ल तै ओ रोगहा छेडू ल दे देहे, ओकर घर के ओमन एक ठन जर ला नि देवे, भुला गे तै तोला ओमन घर चलनी मांगे बर भेजे रहे, अउ तै देखे कईसे भिथिया म टंगाय चलनी ला नट दिस औ हमन ला नै दिस ओकर डौकी ह।
भई गे न ओ दाई तहु हा कब के गोठ ल धर के बैठ गे हस। काबर नि बैठिहा तोर चिज रतिस त तै जानते।
हव ना ओ मोर महतारी हमर घरे के चिज आय, नि खा देवे ओहा नांगर ला, अपन कोला ल जोत के लान दिही।
तेहा नि जानस रे टूरा पर के चिज के कोनो जतन नि करे, मरत जियत ले बउरथे तहा कुछु नठा जाथे त दे के चल देथे। मोला मोर दैझी नांगर जिसने रहिस ओइसने चाही कुछु टुटही फुटही ता ओला तै जान बे।
अपन दाई के टईया गोठ ला सुनके हरना घर ले बाहिर चल देथे।
अउ एती ओकर दाई पउर-परियार बछर के बीजभात ल टुकनी ले निकाल सुपा म उलद्थे अउ बीज मन ला निमारे लागथे। अतका रमकेलिया बीज हे फेर खेडहा बीज कम लागत हे, ए अमारू पटवा के बीज ल रमकेलिया म कोन मिला दिस रे। ए का बीज आय, झुनगा बीज कस तो लागत हे, हा ओही आय।
पर साल खीरा तो बड होए रहिस , पर साल के केवसी खीरा अमरित ले कम नि मिठाये रहिस, कहा हे ओकर बीज दिखत निये। ह सुर्ता आइस ओ सब बीज मन ला तो मेहा नार के बीज भात संग रखे रहे।
अब ओ टुकनी ल खोजे बर लागही, हरना के दाई कोनो कोन्टा ले खोज के चरिहा भर नार-बियार के बीज ले आनथे। अउ ओमा आनि बानी के नार बियार जइसे कोहडा, मखना, तरोई, डोडका, कलेरा, खीरा मन के बीज पा जाथे। फेर ओमा ओहा थोरकुन रमपपाई के बीज घलो पा जाथे।
रमपपाई बीज ला देख के ओला सुरता आथे की कइसे हरन के ममा ह ओ रमपपाई ला हरना संग भेजे रहिस, कतका गुरतुर रहिस हे।
ए सब सोचत हरना के दाई बीज भात म मात गे।
ओहा सोचे लागिस ए दारी बनेच रामकेलिया अउ झुनगा होही त ओला बेच दुहु, खेढ़हा घलो ठीक ठाक हो जाहि त ओकर अमटहा साग रान्धिया बड मिठाही मसरी संग। ए दारी मखना अउ कोहडा के बरी बड कन बनाहा अउ थोरकिन ला मोर मइके भेजवाहा। कतका मिठाथे बरी झुनगा अउ मुनगा के साग हा। अउ मोर ओ केवसी खीरा करिया नून और मिरचा म गोद-गोद के खाए मा कतका निक लागथे, मोला तो सोच के मजा आ गे।
ए सब म मगन हरना के दाई सब साग अउ बरी के मने मन मजा लेत रथे।
तभे बाहिर ले कोनो नरीयाथे
ए ओ हरना के दाई सुनत हस वो,
निये काय कोनो घर म कहत-कहत महराजिन ओकर घर आथे,
येदे हावा काकी सास कहत हरना के दाई अंगना म आथे अउ महराजिन के गोड छू के पाव परथे।
आवा बैठा काकी सास , बड दिन म सपनाये ह का हमन ला कहिके हरना के दाई मचाई ल महराजिन ला देथे।
ले वो फेर कभू आने दिन बैठबो आज थोरकिन बुता हे घर म, घुघरी रांधत हावा चूल्हा म अभीच्चे बघारे बर मडहाय हा साग ल, महराजिन ह अइसे कहत मचाई म बैठथे।घुघरी साग के नाव सुनके हरना के दाई लोभा जाथे अउ कथे काकी सास महू ला थोरकिन घुघरी साग दिहा न, तुहार रांधे घुघरी हा बड मिठाथे।
हाहो वो ले लेबे कुछु धरे के ले आनबे, अउ ले जाबे, महराजिन कथे।
मेहा तोला चेताये आये रहे ओ, तोर कोला के परिया तीर म दू-चार ठन मखना अउ तरोई जगो दे रबे खमरछठ म पसहेर भात संग भोग लगाये अउ फरहार बर लागथे, महराजिन हरना के दाई ल कथे अउ तहा महराजिन अपन घर चल देथे, हरना के दाई ह महराजिन के बात ल मान जाथे। तरोई मखना के गोठ सुनके हरना के दाई के मन फेर ओकर कोला डहर, लागे लागथे, अउ ओला नांगर के फेर सुरता आथे।
अतका बेरा म हरना घर लहुट आथे, ओला आवत देख ओकर दाई बैरंग ओला छेडू घर पठोथे।
एती हरना छेडू घर जाके ओकर सुआरी मेर पुछथे, जोताईस जी भउजी तुहार कोला ह?
भउजी थोरकिन टेटरही अवाज म कथे, जोता गेहे ओकर बाद हरना फेर पुछिस छेडू कहा हे अउ मोर नांगर काहा हे दिखत निये।
नांगर ल लेके तुहर भई खेत चल देहे छेडू के डौकी टेड के कथे। अब तो हरना ल अपन महतारी के गोठ सुरता आये लागथे , फेर ओहा पुछथे कोन खेत डहर गे हे जी भउजी छेडू ह। मोला नि बताए हे कहिके छेडू के डौकी अपन बुता करे लागथे। हरना हा रिसिया जाथे अउ छेडू ला खोजे बर निकल जाथे। पारा के एक दू झन मेर पूछे ले पता चलथे की ओहा टिकरा खार कोती गेहे हे। अब तो हरना टिकरा खार बदक दिस।
एती छेडू चिलम पिके टिकरा जोतत रहय अउ अपन धुन म बैला नांगर चलत रहय। थोरकिन बेरा म एक ठीन बैला हा गोहे ला देख के चमक जाथे अउ नरवा डहर दुनो बैला नांगर सहित भागे लागथे, अउ ओकर पीछू छेडू भगत रहय। ठीक अइसने बेर म हरना घलो ओमेर हबर जाथे, नांगर बैला अउ छेडू ल भागत देख ऊहू ओमन के पाछु भागे लागथे।
तभे एकठन जोर के रचाक के अवाज होथे अउ हरना के नांगर डाडी टूट के दू कुटा हो जाथे।
नांगर के जुडा अउ बैला एक कती त हत्था अउ फाल एक कती गिरे रथे। ए सब ला देख के हरना के मुहु रोन रोनहु होगे अब का कईहा दाई ल। ओहा जानहिं त तो मोला मार डारही ए सब सोचत हरना जाके अपन टुटहा नांगर ल उठाथे अउ छेडू बर गुसिया के ओला बड सुनाथे।
फेर छेडू एमा का करतिस गलती ओकरो रहय कोला जोते बर कहिके ओहा नांगर लाने रथे फेर ओमा उहू हा टिकरा जोते बर चल देथे। अब छेडू अउ हरना दुनो निरास छेडू ला हरना के नांगर के चिंता परे रथे त हरना ल दाई के रिस के।
अब दुनो बड बेर ले सोचथे का करी कहिके फेर दुनो ला कुच्छु नि सूझे। छेडू कथे हरना भई मेहा तोर नांगर ल धान पाए बिना नि बनवय सका मोर उपर पहिली ले अतका करजा हे , तै तो जानत हस गा तोर मेर का लुकाबे।
अब हरना घलो सोच म पर गे
थोरकिन सोच के हरना कथे चल गा छेडू नांगर ल धर अउ मोर घर चल जे होही ते देखा जाही।
अइसे कह के हरना अउ छेडू घर कती आये लागथे।
बड बेर होगे ए तुरा ल गेहे अभी ले कैसे नि दिखत हे कहत हरना के दाई अपन घर के मुहटा मेर आथे।
जइसे ही ओहा दुआरी ले बाहिर निकलथे ओहा हरना अउ छेडू ल टूटहा नांगर ल बोह्के आत देखथे। अब तो हरना के दाई बगिया जाथे , ओ नांगर के संग ओकर मइके के चिनहा अउ ओकर कोला के बिरथा बोये के साद दुनो टूट जाथे। हरना के दाई जेहा पहिली अतका बीज भात ल सकल के निमेरे रथे, खेडहा मसरी के अमटहा साग रांधे के साद धरे रथे ओकर सब साद टूटहा नांगर संग टूट जाथे।
हरना के दाई ए सब देखे के बाद रिसियाके अपन साद के संग जम्मे बीज भात ला घुरवा म ना आथे।

- आशुतोष तिवारी
उलखर, सारंगढ़, जिला रायगढ़
Mo- 8770455901

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छत्तीसगढ़ी म समाचार परोसे के ये उदीम कइसे लागिस, अपन बिचार जरूर लिखव।
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