अमित के कुण्डलिया

अंजोर
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कुण्डलिया

हँसिया पजवालव बने, पोठ करादव धार।
फसल ह पाके नेत मा, चलव-चलिन अब खार।।
चलव-चलिन अब खार, धान झन चिटिक रनावय।
करही महिनत पोठ, उही हा भाग बनावय।।
कहय 'अमित' करजोर, कछोरा भिड़ ले गँसिया।
लुवे धरे बर धान, बने पजवालव हँसिया।।

करपा बगरे हे परे, दे थोरिक तैं ध्यान।
पैरा डोरी लान के, बिड़ा बाँध दे धान।।
बिड़ा बाँध दे धान, खेत मा परगे पाही।
खूँदत नरई रेंग, तभे भारा सकलाही।।
कहय 'अमित' करजोर, मढ़ा चरपा के चरपा।
झन कर गजब अबेर, बाँध ले बगरे करपा।।

बेलन बइला नइ दिखय, लागत हे नंदाय।
बड़े फजर ले पैर मा, सुग्घर धान मिसाय।।
सुग्घर धान मिसाय, घुमय लइका मन चढ़के।
उलानबाँटी खात, मजा मा खेलँय बढ़के।।
कहे अमित मुँहफोर, कभू पाछू ले पेलन।
सुरता रहिगे सार, कहाँ दिखथे अब बेलन।।

दौंरी फाँदय जब बबा, बइलामन ला जोर।
अर्र तता के बोल हा, लागय मधुरस घोर।।
लागय मधुरस घोर, फिरय जब धरे तुतारी।
गोबर तातेतात, जाय तब नाक दुवारी।।
सुरता आथे पोठ, पैर मा घूमन भौंरी।
कहय अमित करजोर, बचालव चीन्हा दौंरी।

लिपे बियारा हा दिखय, अनपूर्णा दरबार।
रास बाँध पूजा करँय, भरे रहय भंडार।।
भरे रहय भंडार, मढ़ावँय गोबर लोई।
सकलाही धन धान, करँय सुग्घर सिलहोई।
कहय 'अमित' कविराज, चढ़ावँय बोंइर डारा।
मन ला बड़ हरसाय, लिपे बहराय बियारा।।

धनहा दिखथे पिंवरा, दाना जब भर आय।
माथ नवाके पेड़वा, मुचुर-मुचुर मुस्काय।।
मुचुर-मुचुर मुस्काय, गजब झूमय सब बाली।
देखत मगन किसान, सुघर मनही दीवाली।।
कहय अमित कविराज, देख के नाचय मन हा।
अनपुरना वरदान, भरै तब डोली धनहा।।

***
 कन्हैया साहू 'अमित'
शिक्षक-भाटापारा छत्तीसगढ़
गोठबात - 9200252055

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