छत्तीसगढ़ी कविता : किरा लगाये
मान गउन कर के खेत बारी सजाये
फर आये के बेरा कुरूप ला देखाये
आधा रद्दा अब तय जिनगी अरझाये
बछर भर के मेहनत मा नियत गड़ाये
रही रही के काबर बादर तय बरसाये
किसानी के फर मा तय किरा लगाये......
आ जा रे बादर कहिके तोला मनाये
भरे सावन मा फेर तय तो नई आये
आये तय हा तो फेर अब बिन बुलाये
आके फेर अब काबर गुस्सा देखाये
रही रही के काबर बादर तय बरसाये
किसानी के फर मा तय किरा लगाये.......
लइका तो हरन तोर से आस लगाये
सउत महतारी कस मया तय दिखाये
अपनेच लइका के तय घेच ला दबाये
देके गोरस ओमा काबर जहर मिलाये
रही रही के काबर बादर तय बरसाये
किसानी के फर मा तय किरा लगाये........
सोमेश देवांगन
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला -कबीरधाम(छ.ग.)
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