हरेली तिहार ले पाटजात्रा पूजा संग सुरू होइस 75 दिन के ऐतिहासिक बस्तर दशहरा परब

अंजोर
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अंजोर.जगदलपुर 9 अगस्त। 75 दिन के ऐतिहासिक बस्तर दशहरा पर्व के शुभारंभ पाटजात्रा पूजा विधान के संग होगे। सावन अमावश्या के दिन जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर के म नगर गुड़ी म पाट जात्रा पूजा विधान पूरा करिन। इहां माचकोट के जंगल ले लाई गिस साल के लकड़ी, जेला ठूरलू खोटला केहे जात हावय, के पूजा विधान के संग शुरु होइस। ए मउका म संसदीय सचिव रेखचंद जैन, अनुविभागीय दण्डाधिकारी जीआर मरकाम सहित बस्तर दशहरा के आयोजन म पुजारी, मांझी-मुखिया, चालकी उपस्थित रिहिस।

जाबना होवय के बस्तर के ऐतिहासिक दशहरा पर्व के शुरुआत 1408 म राजा पुरुषोत्तम देव डहर ले सुरू करे गे रिहिस। 75 दिन तक चले वाला बस्तर दशहरा के शुरुआत हरेली अमावस्या ले होथे। एमे सबो वर्ग, समुदाय अउ जाति-जनजाति के लोगन हिस्सा लेवत हावयं। ये दशहरा बस्तर म आराध्य मां दंतेश्वरी माई के प्रति अगाध श्रद्धा झलकथे। 

ये पर्व के शुरुआत हरेली अमावस्या के माचकोट जंगल ले लाई गे लकड़ी ;ठुरलू खोटला म पाटजात्रा रस्म पूरा करे के संग होइस। येकर बाद बिरिंगपाल गांव के ग्रामीण सीरासार भवन म सरई पेड़ के टहनी ल स्थापित करके डेरीगड़ाई रस्म पूरा करही। ओकर बाद जबर रथ बनाये के खातिर जंगल ले लकड़ी लाने के बुता शुरू होही। झारउमरगांव अउ बेड़ाउमरगांव के गांव वाले मन रथ बनाये के जिम्मेदारी निभात दस दिन म पारंपरिक औजार ले बड़का रथ तइयार करथे। 

ये पर्व म काछनगादी के पूजा के विशेष प्रावधान हावय। रथ बने के बाद पितृमोक्ष अमावस्या के दिन ही काछनगादी पूजा करे जाथे। ए पूजा म मिरगान जाति के नोनी ल काछनदेवी के सवारी कराये जाथे। ये नोनी बेल के कांटा ले तइयार झूला म बइठके रथ परिचालन अउ पर्व के सुचारु रूप ले शुरू करे के अनुमति देथे।

दूसर दिन गांव आमाबाल के हलबा समुदाय के एक युवक सीरासार म 9 दिन के निराहार योग साधना म बइठथे। ये पर्व के निर्विघ्न रूप ले होए अउ लोक कल्याण के कामना करत। ए बखत हर रोज संझा के दंतेश्वरी मां के छत्र ल विराजित करके दंतेश्वरी मंदिर, सीरासार चौक, जयस्तंभ चौक अउ गुरुनानक चौक ले होवत रथ के परिक्रमा करे जाथे।

रथ म माईजी के छत्र ल चढ़ाये अउ उतारे के बखत बकायदा सशस्त्र सलामी दे जाथे। पूरा पर्व म बस्तर के सभ्यता अउ संस्कृति के संग ही परंपरा भी झलकथे। एमे कहू भी मशीन के प्रयोग नइ करे जाये। पेड़ के छाल ले तइयार रस्सी ले ग्रामीण रथ खींचथे। ए रस्सी ल लाने के जिम्मेदारी पोटानार क्षेत्र के गांव वाला मनके होथे।

बस्तर दशहरा के प्रमुख रस्म म मावली परघाव भी हावय, जेमा दंतेवाड़ा ले पहुंचे मावली महतारी के स्वागत भव्य तरीका ले करे जाथे। निशा जात्रा, बाहिर रैनी, भीतर रैनी, मुरिया दरबार अउ मावली बिदाई रस्म ल लेके भी इहां के जनमानस म अपार उत्साह दिखथे। बस्तर के सभ्यता-संस्कृति, समन्वय, लोकाचार, उत्साह ल देखे के खातिर बाहिर के पर्यटक भी बड़ संख्या म पहुंचथे।

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2टिप्पणियाँ

सबो पाठक ल जोहार..,
हमर बेवसाइट म ठेठ छत्तीसगढ़ी के बजाए रइपुरिहा भासा के उपयोग करे हाबन, जेकर ल आन मन तको हमर भाखा ल आसानी ले समझ सके...
छत्तीसगढ़ी म समाचार परोसे के ये उदीम कइसे लागिस, अपन बिचार जरूर लिखव।
महतारी भाखा के सम्मान म- पढ़बो, लिखबो, बोलबो अउ बगराबोन छत्तीसगढ़ी।

  1. आपमन के छत्तीसगढ़ी म अब्बड़ अकन के गलती हावय। छत्तीसगढ़ी म शक्कर के श नई लिखयं। फेर परति ला घलोक प्रति लिखे हो। अउ बनेच अकन के गलती हावय। आपमन के समाचार ला पढ़ के छत्तीसगढ़िया मनखे मन छत्तीसगढ़ी म लिखे बर सीखत होहीं। मंय हर आपमन के गलती ला नई निकालत हों आप मन संग महू छत्तीसगढ़ी भाखा ला सीखे के उदिम करत हंव। मंय बस एतका कहना चाहत हों की आप बिद्वान मन अइसने लिखिहो ता कइसे बनही। जंगाहा झन... मया ला बनाय राख़हु। 🙏🙏
    जोहार।

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  2. मयारूक नील पटेल जी, जय जोहार
    वेबसाइट म आप मनके मया आसिस पाके चोला सिरतोन म गदगद होगे। अऊ आगू घलोक अइसने मया बनाये रखहू। बने ठोस गोठ करे हव। महुं इही बिसय म गुनान करथवं के छत्तीसगढ़ी म कोन-कोन आखर ल लिखे जाए अऊ कोन ल नइ लिखना चाही। स,श,ष,कृ,प्र,क्ष,त्र जइसे केऊ आखर म विवाद हावय।
    महुं जब पहिली रचना लिखेवं 1998 म तव ओ बखत स,श,ष,कृ,प्र,क्ष,त्र के उपयोग नइ करत रहेवं। फेर धीरे-धीरे बड़का साहित्यकार मनके रचना ल पढ़ेवं त ओमन येकर पै बताइस के... जब हमन देवनागरी लिपि ल अपनाये हावन त आधा ल काबर छोड़बो।
    बात इही भर नोहय संसकिरती, परकिरती, सरमा, बरमा, जोयना सिरीमान, सिरीमति, संकर, जिरजोधन जइसे ल मूल शब्द के अपभ्रंश बताये गे हावय। अउ जेन आखर हमर छत्तीसगढ़ी म नइये ओमन के मूलरूप म ही लिखे के मोला निर्देश मिलिस तेकर बादे असइन लिखे के सुरू करे हवं। उन किहिन के हमन ला हिन्दी ल तोड़मरोड़ के छत्तीसगढ़ी नइ बनाना हावय। बल्कि ओ आखर मनके मूल छत्तीसगढी ल खोजना हावय। इही सेती जेन शब्द के छत्तीसगढ़ी नइ जानवं ओला मूलरूप म ही लिखे हवं।
    भाई आप मन कना जेन शब्द ल नइ लिखना या लिखना हावय ओकर, प्रमाणित या मानकीकृत आखर पोथी होही तव मोला जरूर आरो करहू। मोला अपन गलती स्वीकारे म कोनो फदिहत नइ लागे, भलुक सुधारे के उदीम करहूं।
    मैं गद्य विधा म लिखथवं। अउ छत्तीसगढ़ के सबो नवा-जुन्ना लेखक मनके रचना ल पढ़थवं। फेर आज तक मैं उन सबो म एकरूपता नइ पायेव। रायपुर के अलग, बिलासपुर के अलग, रायगढ़ के अलग ये रकम ले कोस-कोस म भाखा ह बदले हावय। जेमा भाखा के रऊती खातिर एकरूपता घातेच जरूरी हावय।
    भाई ते जेन छत्तीसगढ़ी लिखे हस वो ह जांजगीर, रायगढ़ अंचल कोति के जनावत हावय। खैर ये सब तो अपन-अपन विचारधारा के बात आए। फेर भाखा खातिर सबो ल सुम्मत ले जुरियाके गुनान करे बर परही। जय जोहार, संगी।

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