दू कोरी ले आगर शोधपरक साहित्य के रचयिता : दशरथ लाल निषाद

अंजोर
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छत्तीसगढ़ के गवई गांव म रहन-सहन, खान-पान, नता-रिस्ता, पहनावा, सिंगार अउ बोली-भाखा के अलगेच महत्ता हावय। हम देखथन, सुनथन, महसूस करथन फेर ओला लिखे के बारे म सोचथन तव बिसय ह छोटकून लागथे। ये डहर काकरो धियाने नइ जाए। अऊ जेन कोति काकरो धियान नइ जावे उही म दशरथ बबा के जबर कलम चलथे। गवई गांव के लोक जीवन ल उजागर करत उं‍कर अब तक दू कोरी किताब छपगे हाबे, अऊ अतकेच कन पांडुलिपि छपे के अगोरा म हावय। दशरथ बबा ह छत्तीसगढ़ के पहिली अइसे साहित्यकार आए जेमन ग्राम्य जनजीवन ल रेखांकित करत सबले जादा किताब लिखे हावय, जइसे- छत्तीसगढ़ी सतसई, छत्तीसगढ़ के भाजी, छत्तीसगढ़ के कांदा, छत्तीसगढ़ के गांधी, छत्तीसगढ़ के पान, छत्तीसगढ़ के भक्तिन, छत्तीसगढ़ के बासी, छत्तीसगढ़ के मितानी, छत्तीसगढ़ के रोटी, छत्तीसगढ़ के फूल, छत्तीसगढ़ के मछरी-मास, छत्तीसगढ़ के चटनी, अऊ गजब अकन। दशरथ बबा के बारे म ये कहना गलत नइ होही के यदि आप डॉ. दशरथ लाल निषाद अऊ उंकर कृति ल जानथो तब तो आप छत्तीसगढ़ ल जानथो, छत्तीसगढ़ के साहित्य-कला-संस्कृति ल जानथव।   
83 बछर के सियानी उमर म आज ओमन के शरीर जवाब देदे हावय, हांथ-गोड़ नी चले। तभो ले जिपरहा साहित्यकार दशरथ बबा ह अपन खटिया म कंप्यूटर वाला ल बइठा के नवा किताब के सिरजन म लगे हावय। शरीर भले थक गे हावय, फेर मन अउ आत्मा आज भी चेम्मर हावय माटी के लाल के। मगरलोड जिला धमतरी के दुरलवा आचार्य डॉ. दशरथ लाल निषाद ‘विद्रोही’ एक मध्यम किसान परिवार के गुनिक बेटा आए। संगम साहित्य समिति के माई मुड़ी। उंकर जनम तेंदूभाठा म 20 नवंबर 1938 के होइस। महानदी अउ पइरी के कोरा म बसे मगरलोड उंकर कर्मभूमि बनिस। पाख बरोबर अंधियारी अउ अंजोरी के दिन ल तापत अपन मेहनत के दम म दशरथ बबा ह बनि-भूति के संग पढ़ई तको करते रिहिन। हिन्दी साहित्य रत्न के परीक्षा पास करके 'आचार्य' के मानद उपाधि पाइन, अऊ ओ समे म ‘आयुर्वेद विशारद’ के परीक्षा म तको सफल होइन। ओमन अखबारी प्रचार अउ सोशल मीडिया ले कोसो दूरिहा, आंचलिक साहित्यकार अउ एक अनुभवी आयुर्वेद चिकित्सक के रूप म अंचल म जाने जाथे। 

दशरथ बबा के आज जतके उमर होहे ओतके अकन ओमन सम्मान तको पा डरे हावय जेमा नागपुर, इलाहाबाद, इंदौर, हरियाणा, बिजनौर, हैदराबाद, पानीपत, गाजियाबाद, गुना, तलेन, हिमांचल प्रदेश, खंडवा, राजगढ़ अउ बैतूल जइसन शहर के बड़का संस्था कोति ले उनला सम्मानोपाधि मिले हावय अउ स्थानीय स्तर म सम्मानित होइन तेन अलग। हिन्दी म ओमन देशभर के आन-आन पत्रिका म गजब छपे हावय। फेर उंकर ठोस कृति छत्तीसगढ़ी म दिखथे जेहा किताब के संग छत्तीसगढ़ी के पहिली पत्रिका छत्तीसगढ़ी से‍वक, मयारू माटी, बरछाबारी, अंजोर, अऊ दैनिक समाचार पत्र के विशेषांक म प्रमुखता ले छपे हावय। दशरथ बबा ह साहित्य सिरजन भर नइ करत रिहिसे बल्कि अलग छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन म तको जबर योगदान दे हावय।

दशरथ बबा के लेखन के जबर विशेषता आए के ओमन शोधपरक तथ्य लिखथे, चिंतन-मनन के बाद ओला कृति के रूप देथे। अब उंकर ‘छत्तीसगढ़ के कांदा’ किताब म देखव 41 प्रकार के कांदा के उल्लेख हावय- जिमी कांदा, कलिहारी कांदा, गुलाल कांदा, केंवट कांदा, ढुलेना कांदा, डांग कांदा, करू कांदा, जग मंडल कांदा, बनराकस कांदा, बरकान्दा, केशरुआ कांदा। अइसने ‘छत्तीसगढ़ के भाजी’ किताब म- गूमी भाजी, कोलियारी भाजी, मकोइया भाजी, भेंगरा भाजी, सेम्भर भाजी मनके सुवाद अउ लाभ तको बताये गे हावय। ‘छत्तीसगढ़ के सिंगार’ किताब म 76 सवांगा के बरनन हावय जेमा गहना गुठा, गोदना अउ ओनहा पहिरे के विधी विधान ह लिखाये हाबे।
 
दशरथ बबा के पुस्तक 'छत्तीसगढ़ के बासी' म अमरित बासी, चटनी बासी, बोरे बासी, दही बासी, कोदो बासी, पेज बासी, बासी भात अऊ केउ किसम के बरनन उंकर विशेषता सहित हावय। ‘छत्तीसगढ़ के मितानी’ ह इहां के लोक जीवन म मानवता के मया के जबर परिभाषा रखथे- महाप्रसाद, भोजली, गंगाजल, जंवारा, गंगाबारू जइसन नता के बंधना के रीति अउ विधि ले आजीवन चले के सीख संग परम्परा ल संजोये के गियान आधुनिक साहित्य समाज ल देवत हाबे दशरथ बबा ह।

अइसने अड़तालिस पेज के छोटकून ‘छत्तीसगढ़ के चटनी’ किताब ल पढ़े म पढ़ते-पढ़त जीभ ह चटकारा लेथे अउ मुँह ले लार चुचवा जथे। ये विशेषता आए आचार्य डॉ. दशरथ लाल निषाद 'विद्रोही' जी के लेखन शैली के जोन 15 बछर के उमर ले सुरू होके आज 83 साल तक सरलग चलते हावय। भगवान ओमन ल गजब अऊ लम्बा उमर देवय ताकि हमन अइसने उंकर कलम ले शोधपरक साहित्य पढ़त राहन। संगे-संग सरकार ले घलोक गेलौली हावय के ओमन के दीर्घकालीन साहित्य सेवा ल देखत सर्वोच्च सम्मानोपाधि ले अलंकृत करय।

- जयंत साहू, रायपुर 9826753304

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