गोपाल कृष्ण पटेल के कविता : मजबूर हे मजदूर

अंजोर
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मजबूर हे मजदूर



               करोना के डर ले, डरागिन सब मजदूर।
               काम होइस बंद, घर जाय बर मजबूर।।

घर ले कतका दूर हे, पइसा  के चाह।
रद्दा सब्बो बंद हे, कइसे हो निर्वाह।।

               मिले के चाह अड़बड़ हे, कइसे हे परिवार।
               जुरमिलके सह लेबो, करोना के मार।।

कइसे हमर जिनगी,सदा रहय लचार।
अब तक देखे निहि,रंग भरे तिहार।।

               हमर किस्मत म लिखे हे, बस दुख के सउगात।
               काल कहीं "घर भेज देवव", हमर का अवकात।।

रोज कमाई पेट के, होगे हे मंद।
अब कइसे जिनगी चलय,सब्बो रद्दा बंद।।

               जीबो मरबो सब होगे, करोना के हाथ।
               हमनके एक्के आस हे संगी दीहि साथ।।

सब्बो साथी चल दिन, पइदल अपन गांव।
हिम्मत नई हारिस, छाला बाला पांव।।

- गोपाल कृष्ण पटेल "जी1"
शिक्षक कॉलोनी डंगनिया, रायपुर
- gopalpatelweek@gmail.com

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