महेतरु मधुकर के छत्तीसगढ़ी कविता : केवल कर परयास रे

अंजोर
1
का कमी हे जग म तोला,
जऊन होथस तयं निरास रे।
        सकल साधन साध्य हे तोला,
        केवल कर परयास रे...
माटी ह सोना उपजाही,
बादर ए मोती बरसाही।
मेहनत ले करले मितानी,
सुरुज सफलता बगराही।।
        तयं डर झन संगवारी हार के,
        मत मन ल कर न उदास रे...
बुलंद कर तयं अपन हऊसला,
पुरा होही तोर हर एक सपना।
नित  डटे रह  लक्ष के डगर म,
खुशी झुमत आही तोर अंगना।।
        गौरव गान तो ओखरे होथे जी,
        जऊन होवय नही हतास रे...
सुख-दुख तो आथे-जाथे,
हर मुसकुल ह दूर हट जाथे।
मंजिल के डगर कांटा ले भरे,
दिरिन निसचयी ही चल पाथे।।
        सपना सकार तो ओखरे होथे,
        अटूट लगन हे जेखर पास रे...

रचनाकार- 
महेतरु मधुकर
पता- पचपेड़ी, मस्तूरी, बिलासपुर छ.ग.

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1टिप्पणियाँ

सबो पाठक ल जोहार..,
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