दिल्ली महानगर म दिहाड़ी मजदूर अउ तबलीगी : एक नजरिया

अंजोर

मउका ह बताथे अपन अउ बिरान ल। अमीर घर के डउकी-लइका मन हवईजहाज म चड़के सात समुंदर पार ले हब ले भारत आगे। अउ हाए रे गरीब ! ते तो भारत म रिहिके दिल्ली नी लांघ सकेस। उदूप ले आधारात के देशबंदी दूबर बर दू असाढ़ कस होगे गउकिन। ऐती भूख, गरीबी ओति बीमारी। रोज के कमइया-खवइया ऊपर तो मानो गाज गिरगे। शासन-प्रशासन के लॉकडाउन के फैसला घलोक गलत नइ हे बल्कि अऊ जल्दीं ले भारत म देशबंदी कर देना रिहिसे। दुख ये बात के हावय के बीमारी ल सुभित्ता खुसेरे के बाद देशबंदी करिन। इही म फदकिन मजदूर मन। 


दिल्ली देश के राजधानी होए के सेती हजारों मजदूर मन रोजी-रोटी कमाए बर आये रिहिसे। दूर देश म बनि करे बर गे हावय तिकर कहा के घर-दुवार। आखिर महीना दिन बाद काम मिलही के नहीं इहू बात के कोनो गरेंटी नी हे। तब घरे जाना ओमन ल जादा मुनासिब लागिस। घर म काकरो लइका अगोरत हे, त काकरो दाई-ददा। 
ऐति रोगहा कोरोना के सेती सड़क म एको मोटर गाड़ी नहीं। फेर घर तो जाना हाबे चाहे जइसन भी। अइसन खियाल काबर अइस मजदूर के मन म ये जबर गुनान के बात आए। जबकि सरकार केहे रिहिन के सबो बर भरपूर खाये अउ रहे के बेवस्था करबोन। तभो ले दिल्ली ले मजदूर मन अपन-अपन गांव रेंगत निकलगे। लॉकडाउन के बाद सबो के नजर दिल्ली कोति रिहिसे के दिहाड़ी मजदूर मन बर शासन प्रशासन कुछू सोचे होही। फेर उंकर सोच लबारी निकलगे। बिगर कोनो ल हियाव करे आधा रात ले सब कुछ बंद। चलो मोर देश के नाम ले मोर देश के मजदूर उहू म राजी होगे। अब बस ओला अपन डिह-डिहसरी जाना हाबे। 
सरकार कुछ इंतिजाम तो करिस फेर ओ सपुरन नी रिहसे। सरकार तो छोड़ जेकर घर काम करत रिहिन उहू मन काम बंद होय के बाद मुंह फेर दिस। काम निकलगे दुख बिसरागे कस किस्सा होगे। प्रशासन मजदूर मन ल विस्वास नी देवा सकिन के ओकर बर पुरा जोखा कर लेबो, निसंसो राहय। फेर आगू ले कोनो बेवस्था नी रिहसे। एक डहर तो काहत हाबे के कोनो बाहिर झिन आव। दूसर कोति रहे खाए के बेवस्था म देरी। देशबंदी के बाद दू के चार गोठ होइस। जेन जिहा हाबव उहे रहाव। भारत सरकार अउ दिल्ली सरकार के संग आने राज के मुखिया मन तको किहिन के कोनो भूखे नी मरय। तभोच ले काबर जेन ल जे साधन मिलत हाबे उही म सवार होके अपन-अपन घर कोति रवाना होए ललगे। 
गरीब मजदूर मनके अतका भीड़ देखके प्रशासन थर्रागे। आखिर सबो के सबो एके दिन, एकेच ठउर कइसे आगे। इहां बात बहुत बड़का रिहिसे? धीरे-धीरे दिल्ली के दिहाड़ी मजदूर ला बाहिर रेंगाय के पीछू का मंसा रिहिस उंकर ते उही जाने फेर मंजर बहुतेच दुखदायी रिहिस। एक हाथ म मोटरा दूसर म लइका। गजब दूरिहा रद्दा, दुच्छा थइली। कोनो दू सौ किलोमीटर जाही कोनो चार सौ किलोमीटर। नाननान गोड़ के हौसला बड़ जबर रिहिस। नाप दिस कोस भर ल दिन, रात करके। 
गुने के गोठ आए के देश म जतिक भी कोरोना के मरीज मिलिस। ओमा बने होगे कोनो गरीब अउ मजदूर नी रिहिसे, नइतो ओमन मुसवा असन भुंज देतिस कस लागथे। बड़े-बड़े आदमी मनके बीमारी ह देखा अउ बता के आथे यहू सच बात आए। गरीब ल का किबे साहेब वो तो रोज मरथे अउ रोज जीथे। मउत उनला डरा नी सकय। वो तो सदा दूसर बर जीथे। डर तो बड़का मनखे मन ल रिहिसे जेन विदेश ले बीमारी के डर म भगाके अइस अउ लुकागे। भारतबंदी के बाद कोन मजदूर कहां ले निकले हावय कहां तक पहुंचे हावय येकर आरो लोगन मन दिल्ली वाले ले लेवत रिहिसे के ठउका बेरा म दिल्ली निजामुद्दीन के तबलीगी जमात के खुलासा होगे के उहां हजारों आदमी सकलाय हाबे। सबो के धियान अब जमात कोति भटकगे, दिहाड़ी मजदूर अंतरधियान।   
बहुतेच दुरभाग के बात आए, इहां लोगन मन जीव बचाये खातिर लुकाये परे हाबे अउ दूसर कोति येमन बीमारी धरे अऊ आन मन ल बीमार करे बर जमात करत हाबे। लॉकडाउन शुरू होइस विदेश ले आये मनखे मन आन मन सो मिले जुरे के शुरू कर दिस। धीरे-धीरे पिकरी ह जबर घाव होगे। हाथे-हाथ बगरने वाला ये कोरोना के पूरा धियान अब न अमीर न गरीब न राज न देश अउ नहीं विदेश, सरी दिन जमात-जमाती म दिल्ली गुंजे लागिस। अब कहां गए ओ दिल्ली ले निकले मजदूर मन, का अपन घर पहुंचगे? नइये कोनो ल कोनो के खबर। बस दिल्ली नाम के आए फेर दिल थोरको नइये।
खबर ल देखबे ततो अऊ बुरा हाल हाबे। जमाती मन घलोक आदमी आए, भले मजहब अलग हे फेर जीव के डर तो उहू मनला हाबे। काननू के डंडा सब बर चलना चाहि। आखिर देश विदेश के मनखे मन दिल्ली म कइसे रूके हाबे। का करत रिहिसे प्रशासन। ओमन ल छोड़े ले अऊ टेस बाड़थे। जातिवाद ल छोड़ अब सकल मानव समाज बर सोचे के बखत हावय। जमाती होवय चाहे दिहाड़ी मजदूर। काबर सरकार कना कोनो ये पूछे बर नी जावत हाबे के गरीब मजदूर मनके का दशा हाबे। काबर के अब आदमी मन करा आन गोठ गोठियाए अउ आगी लगा के जीव जराए के नवा पै दिखगे निजामुद्दीन के मरकज के तबलीगी जमात। दिन-दिन ओकरे मनके गिनती होवत हाबे इहां मिलिस उहां मिलिस। येकर झगरा ओकर झगरा इही ह टीवी म बने टेमपास करत हाबे। 
सही किबे त कोरोना महामारी जीलेवा आए। येकर कोनो दवई नी बने हाबे। इही पाके सरकार ह धरापछरा देशबंदी के घोसना करिन के हमर कोति जादा झिन सचरे नहिते गजब काल हो जही। आन बड़का बड़का देश जिकर कना सबो तकनीक हाबे तभो ले थथमरा दे हावय। अइसन म भारत के लॉकडाउन के फैसला नीत के आए। सरकार के मुखिया अउ ओकर सबो विभाग के मंतरी, संतरी संग डाक्टर मन तो जीव होम के काम करत हाबे। फिकर सबो के इही हाबे के कम से कम लोगन तक येकर संक्रमण फैले, जेकर ले उपचार म सुविधा होही। मानवता के सेवा जानके सबो ल कोरोना के लड़ई म शासन प्रशासन के संग दे बर परही। घर म रहना हाबे काहत हे तव घरेच म राहव। का गरीब का अमीर सबो जाति धरम के लोगन मन भाईचारा ले जुरमिल लड़ो अउ कोरोना ले जीतो। 
समे के संग मजदूर मनके गोड़ के फोरा घलो मिटा जही। ताहन काली का होही? लॉकडाउन हटे के बाद तूमन फेर काम करे बर बनिहार खोजहू अउ मजदूर मन पेट बिकारी म फेर शहर आही। हम तो अतकेच म मन संतोष कर लेन कि प्रधान जी अउ मुखिया मन कहिन तकलीफ बर माफी, लॉकडाउन ये देश खातिर जरूरी रहिसे। आखिर मजदूरे मन तो दुनिया के भार ल बोहे हे। कोनो बात नहीं राई टरे के बाद फेर जीवन के रेल दउड़े लगही। हां फेर घांव के चिनहा ह सुरता जरूर देवाही।

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