cspdcl: रसूखदार मन ल 'छूट' अउ आम आदमी ल 'करंट' – का ये ह न्याय हे?

अंजोर
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छत्तीसगढ़ मा अइसन लागथे कि बिजली विभाग (CSPDCL) के नियम ह सिरिफ ओमन बर आय जेकर पहुँच ऊपर तक नई हे। प्रमोद दुबे जी ह जेकर नाव लिस हे—चाहे वो मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल होय, टंक राम वर्मा होय या आईएएस राजेंद्र कटारा—ये मन ह सासन-परसासन के बड़े चेहरा अंय। अउ जब इही मन 6500 करोड़ के बिल दबा के बैठे हें, त कतको सवाल खड़े होथे:

गरीब बर सीढ़ी, रसूखदार बर जी-हुजूरी
आम आदमी के अगर दु महीना के बिल नई पटय, त बिजली विभाग के कर्मचारी मन हाथ मा कटर अउ सीढ़ी धर के पहुँच जथें। बिना कोनो बात सुने खंभा ले लाइन ल काट देथें। लेकिन का CSPDCL के कोनो कर्मचारी मा अतका हिम्मत हे कि वो कोनो मंत्री या आईएएस के बंगला मा जाके उंखर लाइन ल काट दे? इहाँ विभाग के 'नियम' ह 'डर' के आगू गोडा टेक देथे।

6500 करोड़ के भारी बोझा
एतका बड़े रकम के बकाया होय के मतलब हे कि विभाग के आर्थिक हालत खस्ता हो जाही। जब विभाग करा पइसा नई रही, त नवा ट्रांसफार्मर अउ बिजली के तार कहाँ ले आही? अउ एखर घाटा ल पूरा करे बर सरकार ह आखिरी मा 'बिजली दर' बढ़ाके ओकर बोझ घलो आम जनता के मुड़ मा लाद देथे।

नियम ह सबके बर एक बराबर होय बर चाही
संविधान अउ कानून मा सबो बराबर हें। मंत्री अउ बड़े अधिकारी मन ल त अउ पहिली बिल पटाना चाही ताकि जनता ओकर ले सीख ले सके। जब 'बाड़ ही खेत ल खाना' सुरू कर दय, त खेत ल कउन बचाही? जउन अधिकारी मन जनता ल नियम सिखाथें, आज ओखरे नाव ह बकायेदार मन के लिस्ट मा हे, ये ह सरम के बात आय।

का लाइन कटे बर जाही?
सच्चाई त इही हे कि CSPDCL के बड़े अधिकारी मन के हिम्मत नई होय कि वो मन मंत्री मन के लाइन काट सकय। जादे ले जादे वो मन एक ठन चिट्ठी लिख के अपन फरज पूरा कर देथें। ये ह साफ-साफ "वीआईपी कल्चर" आय, जिहाँ छोटे मनखे ल दबाई जाथे अउ बड़े मनखे ल बचाई जाथे।

सार गोठ 
अगर सरकार ह सहीं मा 'सुसासन' के बात करथे, त ओला सबसे पहिली अपन मंत्री अउ अधिकारी मन के बिजली बिल ल जमा करवाना चाही। जनता सब देखत हे—अगर गरीब के घर के अँधियार हो सकथे, त बिल नई पटाए मा रसूखदार मन के बंगला मा घलो अँधियार होना चाही। तब जाके विभाग के साख बाचही।

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