प्रणव झा : छत्तीसगढ़ी सिनेमा के नवा सोच-विचार वाले निर्देशक, जेकर हर फिल्म सफल होथे, जानव फिल्मी कैरियर के बारे में

अंजोर
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छत्तीसगढ़ी सिनेमा जगत म एक जेन नाम अपन अलग पहचान बनाय हे, वो हे प्रणव झा। आज प्रणव झा ह सिरिफ एक निर्देशक नहीं, बल्कि एक सोच, एक जुनून अऊ एक प्रेरणा के रूप म जाने जाथे। ओखर सिनेमा ह सिरिफ मनोरंजन भर नहीं बल्कि समाज के भीतर झाँक के देखे वाला आइना हे। 

प्रणव झा के शुरुआती जीवन अऊ शिक्षा-

प्रणव झा के जनम अऊ बचपन भानुप्रतापपुर के भानपट्टापुर गांव म बितिस। गांव के सादा माहौल म पले-बढ़े प्रणव के भीतर बचपन ले सिनेमा के प्रति एक गजब के आकर्षण रहिस। गांव म अकसर अपन संगी-संगवारी मनके संग सिनेमा के गोठबात करय। प्रणव झा अपने एक साक्षत्कार म कहे रिहिन के ओकर भितरी मिथुन चक्रवर्ती अऊ गोविंदा के प्रति गजब के दिवानगी रिहिस। प्रणव झा किथे के- भगवान के बाद दूसरा दरजा मिथुन चक्रवर्ती अऊ गोविंदा हे अतका दिवानगी रिहिसे। माने ओमन दूसरइया भगवान बरोबर आए। गांव म हायर सेकेण्डरी करे के बाद ओमन राजनांदगांव आगे। 

राजनांदगांव ले मुंबई के सफर अऊ संघर्ष-

स्कूली शिक्षा पूरा के करे बाद राजनांदगांव आना होइस। चुकि प्रणव झा के पूरा परिवार सरकारी नौकरी म हावय, लेकिन प्रणव झा ल हीरो बनना रिहिस अउ सिनेमा के रसता आसाना नइ रिहिस। प्रणव झा ह पिताजी के साथ दे ले, अपन सपना पूरा करे बर 1997 म मुंबई चले गे।

मुंबई पहुंचे के बाद पता चलिस के इहां इतना आसान नइ हे- एक बात समझ में आइस के सिनेमा सिरिफ परदे म देखे जइसना नइ हे, ओ ह एक पूरा तकनीकी, भावनात्मक अऊ टीमवर्क के कला आय। तक मोला लगिस के अब टेक्निकल चीज सीखना हे। 

मुंबई म रहिके प्रणव झा ह सीखे-

कइसे कैमरा काम करथे, एडिटिंग, लाइटिंग अऊ कहानी, सवांद लिखे के तरीका का होथे। ओ ह धीरे-धीरे समझे लगिन के फिल्म बनाय बर सिरिफ अभिनय नहीं, एक सृजनशील दृष्टि के जरूरत होथे।

परिवार अऊ निजी जीवन-

प्रणव झा के परिवार म माता-पिता, पत्नी अउ लइका हावय जेकर संग समय बिताना ओमन ल बने लागथे। जब समय मिलथे परिवार संग गोठियाथे, परिवार ज्‍यादा दिन दूर रहना बने नी लागे। सबले खास बात ओमन के परिवार म सबो सरकारी नौकरी वाले हावय। प्रणव किथे के मैं सरकारी नौकरी म नइ हवं ये सेती मोर बिहाव म अड़चन आत रिहिस, लेकिन परिवार वाले मनके मया-दुलार ले सब ठीक होगे। 

फिल्मी सफर अऊ निर्देशन-

प्रणव झा ह अपन निर्देशन के सफर के शुरुआत छत्तीसगढ़ी फिलिम ‘बीए फर्स्ट ईयर’ ले करे रहिन। येकर पहिली ओमन एड फिलिम करिस, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ले भी जुड़े रिहिस। प्रणव बताथे के जब ओमन पहिली फिलिम करत रिहिस तो हर बारीक से बारीक चीज के अध्ययन करिस। कहानी, सवांद से लेके कलाकार मनके चयन सब सूत्र म बंधे रिथे तभे सिनेमा ह दर्शक ल बने लागथे। अब तो ओमन सरलग फिलिम बनात हावय, सबो फिलिम ल दर्शक मन बनेच पसंद करत हाबे।

प्रणव झा के प्रमुख फिल्म- 

  • बीए फर्स्ट ईयर, 
  • बीए सेकंड ईयर, 
  • बीए फाइनल ईयर, 
  • बेनाम बादशाह, 
  • डार्लिंग प्यार झुकता नहीं, 
  • टीना टप्पर, 
  • एम.ए. प्रीवियस

प्रणव झा के सिनेमा-

छत्तीसगढ़ी सिनेमा म निर्देशक के मन के सोच सिनेमा म दिखथे। कुछ तो अइसे बात होथे जेला ओमन अपन हर सिनेमा म दोहराथे। हांलाकि केहे ये जाथे के ‘ये फिलिम ओकर ले हटके हावय’। लेकिन जो प्रणव झा के खास बात होथे वो हे फिलिम के कहानी अउ संवाद। कहानी के परिवेश आम दर्शक के बीच ले निकलथे, हर दर्शक ल अइसे लगथे कि येतो हमर बीच के बात आए। अउ दर्शक फेर ओ सिनेमा म रम जथे। प्रणव झा के 'बीए फस्ट  ईयर' ले लेके 'एम ए प्रीवियस' तक ओमन कहानी, संवाद अउ गीत के संग लोकेशन अउ कलाकार मनके चयन म हर बार प्रयोग करे हे, सबो बार ओमन सफल होए हाबे। 

छत्तीसगढ़ी सिनेमा म एक बात के गजब सोर हावय के प्रणव झा नवा कलाकार मनला मौका देथे। बात सिरतोन तो आए, मन कुरैशी येकर प्रत्यक्ष उदाहरण आए। अइसे कई कलाकार हावय जेन मन कला के क्षेत्र म तो रिहिस लेकिन बड़े पर्दा म लाने के श्रेय प्रणव झा ल जाथे। ओमन किथे- “अगर सिनेमा ल जिंदा रखना हे, त नवा चेहरा अऊ नवा सोच आना जरूरी हे।” 

लोकेशन के बात करें जो प्रणव झा ल प्रकृति के तिर रहना बहुत पसंद हे इही पाके ओमन बस्तर, नरायणपुर, अंबिकापुर, मैनपाट, राजनांदगांव जइसे प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर जगह मन म फिल्मांकन करे हावय। ओखर हर फ्रेम म छत्तीसगढ़ के धरती, रंग अऊ संस्कृति झलकथे।

प्रणव झा के फिलिम चाहे एक्शन, रोमांस या थ्रीलर हो, सबोच के अंत सुखद होथे। तीन घंटा के सिनेमा म ओमन सब कुछ समावेशित करे के प्रयास करथे, जेमा दर्शक पूरा मनोरंजन होए अउ हांसत-हांसत घर जाए। सार बात केहे जाए तो प्रणव झा के स्टोरी म कुछ न कुछ संदेश होथे। ओमन किथे- “फिल्म सिरिफ देखाय बर नइ बनाय जाथे, बल्कि महसूस करे बर बनाय जाथे।”  

 ‘बेनाम बादशाह’ ओखर सबसे पसंदीदा फिल्म-

प्रणव झा ह कहिथें के वइसे तो मोर सबो फिलिम मोर बर बहुत अच्छा हावय, लेकिन संदेश के नजर ले देखे जाए तो ‘बेनाम बादशह’ अच्छा रिहिस। ओमा के संदेशप्रद कहानी ल लोगन भी पसंद करिस, साथ ही संवाद भी बहुत अच्छा सीख अउ नीक के रिहिस। ओमन किथे- “दर्शक के मन के भाव समझे बिना कोई फिल्म सफल नइ हो सकय।”

‘एम.ए. प्रीवियस’ नवा दौर के उम्मीद

7 नवंबर के रिलीज होवइया बहुचर्चित फिल्म ‘एम.ए. प्रीवियस’ के बारे म तको केहे जाथे के ए फिल्म ह जोश, नवा एक्शन अऊ सुमधुर गीत ले भरपूर हे। जेन दर्शक मनला बहुत पसंद आही। काबर के बीए फस्ट ईयर ले सुरू होए सफर ह एम. ए. प्रीवियस तक पहुंच चुके हावय। उम्मीद हे के प्रणव झा जी एम ए फाइनल होए के बाद अपन दर्शक ल आगू तको कॉलेज के सफर जारी रखही, पढ़ाई बाद नौकरी लगाही के बेरोजगारी झेलही ये बाद के बात आए, बहरहाल प्रणव झा जी ल बहुत बहुत बधाई अउ सुभकामना। 

प्रणव झा के जीवन के सार संदेश- 

“मोर जीवन म पइसा कभी प्रमुख नइ रहिस। पइसा नइ रहिस, त भी मन के सपना छोड़े नइ हों।” ओ ह मानथें के फिल्म निर्माण म उतार-चढ़ाव रहिथे, पर जब एक फिल्म सफल होथे, त वो पिछले सब संघर्ष के भरपाई कर देथे। प्रणव झा ह छत्तीसगढ़ी सिनेमा के वो चेहरा हवं, जेन मन ले कहानी कहिथे, तकनीक ले दिखाथे, अऊ भावना ले दर्शक के दिल जीथे।

प्रेरणा अऊ योगदान-

प्रणव झा ह छत्तीसगढ़ी फिल्म उद्योग के लिए एक प्रेरणा के रूप म गिने जाथे। ओखर सोच ह साफ हे- “छत्तीसगढ़ी सिनेमा ला नवा पहचान तब मिलही, जब हमन अपन भाषा अऊ संस्कृति म गर्व महसूस करबो।” ओ ह नवा तकनीक, नवा विषय अऊ नवा प्रस्तुति के माध्यम ले सिनेमा ला आधुनिक दौर म लाने के निरंतर कोशिश करथें।

प्रणव झा ह आज के समय म छत्तीसगढ़ी सिनेमा के सबसे मेहनती, रचनात्मक अऊ संवेदनशील निर्देशक हावं। ओखर हर फिल्म म सच्चाई, संदेश अऊ समाज के झलक मिलथे। ओ ह अपन जीवन के हर संघर्ष ला सिनेमा के रंग म बदल दिस।

प्रणव झा के फिल्‍म के पोस्‍टर-









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