📅 तारीख: 26 मई 2025, सोमवार
🕒 अमावस्या तिथि आरंभ: 26 मई के बिहान 12:11 बजे
🕗 अमावस्या तिथि समाप्त: 27 मई के बिहान 08:31 बजे
📜 का होथे वट सावित्री व्रत?
वट सावित्री व्रत हर साल ज्येष्ठ मास के अमावस्या तिथि म सुहागिन महतारी-बहिनी मन के द्वारा मनाए जाथे। ये दिन सती सावित्री अउ ओकर पति सत्यवान के अमर प्रेम, निष्ठा अउ दृढ़ संकल्प के प्रतीक माने जाथे। मान्यता के अनुसार, सावित्री अपन दृढ़ संकल्प अउ भक्ति ले यमराज ले अपन मरे बर तइयार पति के प्राण वापिस ले आय रिहिस।
🙏 काबर करे जाथे ये व्रत?
- पति के दीर्घायु बर
- घर-परिवार के सुख-समृद्धि बर
- मन के शांति अउ आध्यात्मिक उन्नति बर
🌳 वट वृक्ष (बरगद के पेड़) के पूजा काबर?
वट वृक्ष ला त्रिदेव– ब्रह्मा, विष्णु अउ महेश के वास के रूप म मान जाथे। सावित्री ह घनघोर तप करके इहीं पेड़ के नीचे अपन पति के जिनगी ला वापिस पाये रिहिस। तेकर सेती, व्रत के दिन वट वृक्ष के पूजा करके ओकर चारो कोती सूत लपेट के 7 या 21 बार फेरा लगाय जाथे।
🧘♀️ कैसे करे जाथे व्रत?
- बिहान जल्दी उठके नहा-धोय के पवित्र होवय।
- निर्जला उपवास रखे जाथे– पानी तक नइ पिए जाथे।
- बरगद के पेड़ के पूजन सामग्री– लाल धागा, फल-फूल, सिंदूर, हल्दी, रोली, चावल, धूप, दीप, जल, मिठाई आदि।
- सावित्री-सत्यवान के कथा सुने अउ सुनाये जाथे।
- पूजा के बाद महिला आपस म सुहाग सामग्री (सिंदूर, चूड़ी, बिंदी) के एक दूसर ल देथे-लेथे।
🍲 का-कुछ बनथे भोग म?
वट सावित्री व्रत म खास पकवान बनाके भगवान अउ वट वृक्ष ला भोग लगाये जाथे:
- सिंघाड़ा के आटा ले बने पकवान
- गुड़ अउ आटा के पूआ
- चना अउ पूरी
- मीठी पुड़िया, मुरब्बा अउ खीर
- कई ठउर म फलाहारी खिचड़ी घलो बनाये जाथे।
📌 व्रत के नियम अउ विशेष बात
✔️ व्रत म सच्चा मन ले भक्ति करथें, झूठ-फरेब ले बचे के संकल्प घलो लेय जाथे।
✔️ साज-सिंगार करके महिला पूरा पारंपरिक रूप म पूजा म सामिल होथें।
✔️ व्रत के आखिरी म दान-पुण्य अउ भोजन वितरण घलो करे जाथे।
🌺 लोक मान्यता अउ सांस्कृतिक महत्व
उत्तर भारत म खास कर ये परब ल मनाये के चलागन हावय। फेर धीरे-धीरे पूरा देश म येला मनाये के परंपरा शुरू होगे हावय। अबतो छत्तीसगढ़ सहित देश के कई राज्य म वट सावित्री व्रत के बड़ मान्यता हावय। ये दिन ला सुहागिन महिला अपन श्रद्धा, प्रेम अउ त्याग के प्रतीक मनाथें। जइसने सावित्री ह कठिनाई म घलो हार नइ माने, तइसने हर नारी अपन परिवार बर संघर्ष के प्रेरणा लेथे।
📱 मोबाइल उपयोगकर्ता बर खास जानकारी
- 👉 अगर आप अपन नजदीकी मंदिर म व्रत पूजा करे बर जावत हाव, त पहिली ले पूजा सामग्री रेडी कर लव।
- 👉 लाइव कथा या पूजा दर्शन यूट्यूब चैनल म कई झिन अपलोड करथें– ओखर लिंक म जाके वीडियो ल देखो।
- 👉 आप मोबाइल म “वट सावित्री पूजा विधि PDF” घलो डाउनलोड करके पूरा प्रक्रिया समझ सकथव।
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👉 आस्था, श्रद्धा अउ संस्कृति के संगम हे वट सावित्री व्रत। ए दिन ला सच्चा मन ले मनावव, संकल्प ले भरपूर रहव अउ घर-परिवार म खुशहाली के मंगलकामना करव।
वट सावित्री व्रत के शुरूआत महाभारत काल ले होइस
वट सावित्री व्रत कब ले सुरू होइस हावय ये बात के सही सही आरो लगा पाना मुसकिन हावय, काबर ये एक हिन्दू परंपरा आय जऊन हजारों बछर ले चलत आवत हे। फेर येकर सुरूआत के कहानी हमन ला महाभारत काल के कथा अऊ पौराणिक ग्रंथ म मिलथे।
🔸 इतिहास अऊ पौराणिक संदर्भ:
वट सावित्री व्रत के कहानी के पहिली बेरा जिकिर महाभारत के वन पर्व म होथे। ये व्रत सावित्री अऊ सत्यवान के कथा म आधारित हे, जेमे सावित्री अपन पति के परान ला यमराज ले अपन संकल्प अऊ भक्ति के जोर ले वापिस ले आय रहिस। ए घटना ला चिन्हारी बना के, हर बछर ज्येष्ठ अमावस्या के दिन सुहागिन मन अपन पति के लम्बा उमर खातिर ये व्रत करथें।
🔸 धार्मिक विश्वास:
ये व्रत खास करके उत्तर भारत, मध्य भारत, महाराष्ट्र अऊ गुजरात म मनायेे जाथे। येकर सुरूआत सनातन वैदिक परंपरा के समय ले माने जाथे, अऊ ये ला महिला धर्म के एक ठन जरूरी हिस्सा माने जाथे।
🔸 सावित्री अऊ सत्यवान के पौराणिक कथा:
बहुत पहिली के बात आय। भद्र देश के राजा अश्वपति के एको झिन लइका नइ रिहिस। ओमन देवी 'सावित्री' ले लइका पाये खातिर गजब तप करे रहिस, अऊ देवी खुश होके ओमन ल एक सुन्दर बेटी के वरदान दे देय रहिस। ओ बेटी के नाव घलो 'सावित्री' धर दीन।
जब सावित्री जवान होईस, त ओ अपन पति खातिर सत्यवान नाव के एक राजकुमार ला पसंद करिस, जऊन वन म रहय, फेर बहुत धर्मात्मा अऊ गुणी रिहिस। ज्योतिषी मन राजा ला बताइन कि सत्यवान अल्पायु आय, अऊ ओकर जीवन, बियाह के एक बछर बाद खतम हो जाही। फेर सावित्री अपन फैसला म अटल रहिस अऊ ओकर ले बिहाव कर लिस।
सावित्री अपन सास-ससुर के सेवा करत एक बछर तक रोज भगवान के भक्ति, उपवास अऊ पूजा करत रहिस। जब ओ दिन आइस, ओ अपन पति के संग जंगल गिस। ओतका म सत्यवान लकड़ी काटत-काटत बेहोश होके गिर पड़िस। तहां यमराज आ गे अऊ सत्यवान के परान ल ले जात रहिन।
सावित्री उंकर पीछू-पीछू चल दिस। यमराज कई बेर कहिन– "लौट जा, सती।" फेर सावित्री अपन धर्म, नारी शक्ति अऊ बुद्धि ले यमराज ला प्रभावित करत चल दिस।
आखिर म यमराज कहिन –
"मैं तोर भक्ति ले प्रसन्न हंव, वर मांग।"
सावित्री पहिली कहिस – "मोर सास-ससुर के आंखी म उजियारी आ जाय।"
यमराज – "तथास्तु।"
फेर कहिस – "उनकर खोये राज फेर ले मिल जाय।"
यमराज – "तथास्तु।"
अंत म कहिस – "मैं सौ बेटा चाहथंव।"
यमराज चौंक गे – "जब तोर पति नइये, त बेटा कइसे होही?"
सावित्री मंद मुस्काई – "हे धर्मराज, जब आप मोला बेटा देथो, त पति घलो देय ला परही।"
यमराज हँस देइन –
"सावित्री! तोर भक्ति अऊ बुद्धि के आगे मं नतमस्तक हंव। सत्यवान ला जीवनदान देथं।"
🔸 नारी शक्ति के अमर गाथा:
सावित्री के आँखी म अब पीरा नइ, श्रद्धा अऊ जीत के आँसू रहिस। ए कहानी केवल एक नारी के भक्ति नइ आय – ये ह एक नारी के दृढ़ता, सच्चा प्रेम अऊ बुद्धि के गाथा आय। जिहां सच्चा प्रेम, निस्वार्थ संकल्प अऊ श्रद्धा होथे, तहां मौत घलो हार मान जथे।
🌺 वट सावित्री व्रत– ये ह नारी शक्ति के, प्यार के अऊ धरम के जियत जागत परब आय, जऊन आज घलो हजारों नारी मन अपन पती के भलाई खातिर श्रद्धा अऊ सच्चा मन ले करत हवंय।
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