जशपुर जिला के दूरस्थ अंचल के महिला मन के डहर ले छिंद कांसा ले बनाये टोकरी अउ आन जिनिस गजब टिकाऊ अउ मनमोहक हावयं। जशपुर जिला के काँसाबेल विकासखण्ड के समूह के दीदी डहर ले बनाये जात हावय अउ अच्छा आमदनी पावत हावय। चूकि ये अभ्यास लगभग 30 साल जुन्ना हावय फेर येमे उद्यमिता के छाप राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन अउ छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प बोर्ड के प्रयास ले संभव हो सके हावय।
अभी के बेरा म लगभग 100 महिला मन ए उद्योग म जुरे हावयं अउ सतत् रूप ले उत्पादन अउ बेचे बुता म लगे हावय। आकर्षक अउ सुन्दर छिंद कांसा के टोकरी होए के सेती ले जिला म अउ राज्य के कोने-कोने ले येकर सतत मांग बने रिथे। जशपुर जिला जिनिस के बिसेस ब्रांड जशप्योर के बने के पाछु भारत के आन राज्य ले तको सरलग मांग बढ़त हावय, जेकर ले ए उद्योग म जुरे महिला म बिसेस उछाह नजर आत हावय। छिंदकासा बुता काँसाबेल विकासखण्ड के कोटानपानी गांव पंचायत के अधिकतर घर के महिला मन डहर ले करे जात हावय, कोटानपानी गांव पंचायत मूलतःआदिवासी बाहुल्य क्षेत्र हावयं।
छिंद अउ कांसा के सामाजिक अउ सांस्कृतिक महत्व-
जशपुर के आदिवासी समुदाय म विवाह, देवता पूजन, छठ पूजा उक म छिंद कांसा के बिसेस महत्ता हावय। छिंद अउ कांसा घास ले बने टोकरी अउ जिनिस प्राकृतिक अउ सांस्कृतिक चिन्हारी होवत हावयं। वइसने छिंद कांसा टोकरी बनाये के प्रचलन लगभग 30 साल जुन्ना हावय। येकर पहिली सदियों ले छिंद के चटाई बनाये के प्रचलन भारत के आने-आने राज्य म व्याप्त रिहिन हावय।
कोटानपानी के दीदी ले बात करे म ओमन बताइन के मन्मति नाम के एक किशोरी नोनी आज ले 25 साल पहिली तिर म के विकासखंड फरसाबहार के गांव पगुराबहार म अपन नानी के घर गे रिहिस अउ उहाँ अपन ननिहाल के महिला मन ले टोकरी बनाये के बुता सीखिस। काबर के ये एक नया प्रयोग रिहिस पहिली म सिरिफ चटाई बनाये जात रेहे हावय। ए बुता म विशेषता ये रिहिस के टोकरी छिंद अउ कांसा घाँस ले मिश्रित टोकरी के नेव तइयार करे रिहिस। छिंद ल कांसा घास के संग मिश्रित करके गोल आकार म तइयार करे जाना आसान अउ रोचक रिहिस। मन्मति अपन ननिहाल ले लहुंट के कोटानपानी म ये बुता सुरू करिन। पड़ोस के महिला मन ह सुन्दर टोकरी बनाइन, मन्मति ल देखे अउ कुछ महिला मन तको एला बनाये के इच्छा प्रकट करके सीखे लगीस। कुछ महिला मन टोकरी बनाके स्थानीय बाजार म बेचना सुरू करके दीस जेकर ले ओला कुछ फायदा मिलिस अउ ये सिलसिला लगभग 10 साल तक चलत रिहिन। 2017 म राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका बिहान के स्व मदद समूह के गठन सुरू हो गे। आजीविका गतिविधि सर्वेक्षण म छिंद कांसा टोकरी बनाये ल ग्रहण करे गिस अउ प्रशिक्षण, स्थानीय स्तर म समूह ल करजा अउ बाजार के उपलब्धता सुनिश्चित करे बर प्रयास सुरू करे गे। सुरू म कुल तीन समूह, हरियाली, ज्ञान गंगा अउ गीता समूह ये बुता करे लगे। 2019 म छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प बोर्ड के आगमन होइस अउ उंकर कोति ले 12 महिला मन ल प्रशिक्षित करे गिस।
सबले पहिली बिहान मेला म टोकरी के प्रदर्शनी लगाये गिस जेमा कोटानपानी गांव ले लक्ष्मी पैंकरा अउ रिंकी यादव, बिहान के क्षेत्रीय समन्वयक आशीष तिर्की ए मेला म सामिल होइस। आज छिंद कांसा टोकरी के पहचान पूरा भारत म हावय। मुख्यमंत्री अउ जिला प्रशासन के सतत प्रयास ले महिला मन अच्छा उत्पादन अउ विक्री करके लखपति दीदियाँ बन चुके हावय। जिला प्रशासन, एनआरएलएम अउ छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प बोर्ड के माध्यम ले लगभग 15 समूह के महिला मन ल प्रशिक्षण दे करके अउ 100 ले जादा महिला मन ल रोजगार ले जोड़े गे हावय। अब एमन ल इंकर बुता ल सम्मान अउ पहचान दिलवाना हावय। ये टोकरी फल, पूजा सामान अउ भेंट सामान के रूप म उपयोग करे जाथे अउ आकर्षक होए के सेती ले येकर मांग जोरों म हावय।
छिंद सामान्य खजूर के पेड़ के पत्ता हावयं जेला तोड़ के सूखा ले जाथे। ये पत्ता 2 रकम ले के होवत हावय थोकन ठोस अउ मुलायम टोकरी बनाये म थोकन ठोस किस्म छिंद उपयोग म लाए जात हावयं। मुलायम छिंद ले चटाई बनाये जात हावय। छिंद बारह मासी पेड़ हावय, जेकन ले आसानी ले साल भर उपलब्धता बने रिथे। छिंद के पेड़ सामान्यतः तिर म के राज्य झारखंड अउ जशपुर जिला के कॉसाबेल अउ फरसाबहार विकासखण्ड म बहुतायत म पाए जात हावयं। छिंद के पत्ता एक बार काटे के बाद तीन महीना के इंतजार के बाद ही काटे जा सकत हावय।
कांसा घास एक रकम ले के घास होवत हावय अउ ये आस-पास के खुले क्षेत्र म अउ कम वर्षा वाला जमीन म बहुतायत म मिल जाथे । सामान्यतः जून के महीना ले सुरू होके ये जुलाई या अगस्त महीना के शुरुआत म काट करके सुरक्षित सूखा करके रख ले जाथे। हरियर चारा होए के सेती ले मवेशी ले बचाके रखे जाथे। कोटानपानी के महिला मन डहर ले छिंद अउ कांसा कच्चा माल के रूप म पहिली ले ही अउ वाजिब समय म संरक्षित रख ले जाथे। “सावन म सांवा फूटे भादों म कांसा‘‘ ये परसिध छत्तीसगढ़ी गीत ये संदेश तको देत हावय के कांसा ल भादों महीना के पहिली काट लेना नइ ते ये कोनो काम के नइ रइही। कांसा घास के उपयोग घाँस ल सामिल करके बेलनाकार बनाके टोकरी ल गोल नुमा आकार अउ मजबूती दे के खातिर होवत हावय। छिंद के पत्ता ले कांसा के ऊपर लपेटकर आकर्षक रूप दे जाथे।
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