वांगला-रुंगला, रेट-किनॉन्ग, गेह पदम ए ना-न्यी ई अउ सोलकिया आदिवासी नृत्य के झलक दिखही रायपुर म 14-15 नवम्बर तक

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वांगला-रुंगला, रेट-किनॉन्ग, गेह पदम ए ना-न्यी ई अउ सोलकिया आदिवासी नृत्य के झलक दिखही रायपुर म 14-15 नवम्बर तक


राजधानी रायपुर के साइंस कॉलेज मैदान म दू दिवसीय जनजाति गौरव दिवस के बड़का आयोजन म देश के आने-आने राज्य के संग पूर्वोत्तर राज्य के कलाकार तको अपन संस्कृति के झलक बिखेरही। 14-15 नवम्बर के आयोजित कार्यक्रम म प्रस्तुति दे पूर्वोत्तर भारत के पांच राज्य मेघालय, मिजोरम, असम, अरुणाचल प्रदेस अउ सिक्किम के कलाकार रायपुर पहुंच चुके हावयं। रायपुर रेलवे स्टेशन म कलाकार मन के पुष्पाहार अउ तिलक लगाके स्वागत करे गिस। पूर्वोत्तर राज्य ले आए ये कलाकार वांगला-रुंगला, रेट-किनॉन्ग, गेह पदम ए ना-न्यी ई, सोलकिया जइसे लोक नृत्य के प्रस्तुति ले अपन संस्कृति के विविध रंग बिखेरही।  

फसल कटाई के बाद गारो आदिवासी मन वांगला-रुंगला नृत्य करके देवता मिस्सी सालजोंग के जोहार करथे


जनजातीय गौरव दिवस म प्रस्तुति दे खातिर मेघालय ले 20 सदस्य मन के टीम रायपुर आये हावय। ये दल गारो जनजाति डहर ले फसल कटाई के बाद करे जाये वाला वांगला-रुंगला लोक नृत्य प्रस्तुत करही। येकर कलाकार मेघालय के राजधानी शिलांग ले करीब 200 किलोमीटर दूरिहा नॉर्थ कर्व हिल्स (North Curve Hills) ले आए हावयं। दल के अगुवई करत मानसेन मोमिन ह बताइन के वांगला गारो जनजाति के लोकप्रिय तिहार हावय। ये जनजाति कृषि अर्थव्यवस्था म निर्भर हावय। फसल कटाई के बाद उर्वरता (Fertility) के देवता मिसी सालजोंग ल धन्यवाद दे के खातिर वो ये नृत्य करथे। वो बने फसल खातिर भगवान ल धन्यवाद देथे, उंकर पूजा करके नाच-गाके प्रार्थना करथे अउ नवा फसल के भोग लगाथे। देवता मिसी सालजोंग ल धन्यवाद दे ले पहिली कोनो भी कृषि जिनिस के उपयोग नइ करे जाथे।

वांगला-रुंगला आदिवासी लोक नृत्य म महिला अउ पुरुष दुनों हिस्सेदारी होथे। पुरुष नर्तक अपन परंपरागत ढोल लेके नृत्य करथे जेला दामा केहे जाथे। वांगला-रुंगला लोक नृत्य म नर्तक के अगुवई करइया ल ग्रिकगिपा या तोरेगिपा किहिन जाथे। एमे महिला मन संगीत के धुन म अपन हाथ हिलाथे, जबकि पुरुष अपन परंपरागत ढोल ल बजाके नृत्य करथे।

वांगला-रुंगला, रेट-किनॉन्ग, गेह पदम ए ना-न्यी ई अउ सोलकिया आदिवासी नृत्य के झलक दिखही रायपुर म 14-15 नवम्बर तक

दुश्मन ले जीत के जलसा के नृत्य सोलकिया म मंत्रोच्चार जइसे स्वर संगीत के संग होथे नृत्य

मिजोरम के राजधानी आईजोल ले रायपुर पहुंचिस लोक नृत्य दल इहां सोलकिया नृत्य के प्रस्तुति देही। येकर 20 सदस्य मन के दल म 11 पुरूष अउ नौ महिला मन सामिल हावयं। ये नृत्य मुख्यतः मिजोरम के मारा जनजाति डहर ले करे जाथे। ‘सोलकिया’ के अर्थ दुश्मन के कटे मुड़ ले हावय। सोलकिया नृत्य मूल रूप ले दुश्मन म जीत के जश्न मनाने के खातिर करे जात रिहिस। खासकर वो मउका म जब विजेता डहर ले दुश्मन के मुड़ ट्रॉफी के रूप म घर लाने जात रिहिस। फेर अब ये सबो जरूरी मउका म मिजो समुदाय के पुरुष अउ महिला मन डहर ले करे जाथे।

मिजोरम के कलाकार मन के दल के अगुवई करत जोथमजामा ह बताइन के सोलकिया नृत्य के शुरुआत पिवी अउ लाखेर समुदाय डहर ले करे गे रिहिस। ए लोक नृत्य के संग आने वाला स्वर संगीत गायन के तुलना म मंत्रोच्चार के जादा निकट हावय। ताल संगीत एक जोड़ी घड़ी डहर ले दे करे जाथे, जेन एक आन ले बड़े होवत हावयं, जेला डार्कहुआंग केहे जाथे। संगीत ल बढि़या बनाये के खातिर कई जोड़ी झांझ तको बजाए जात हावयं।

श्री जोथमजामा ह ए नृत्य ल करइया मारा जनजाति के बारे म बताइन के ये एक कुकी जनजाति हावय जेन मिजोरम के लुशाई पहाड़ी अउ म्यांमार के चिन पहाड़ी म रिथे। एमन ल लाखेर, शेंदु, मारिंग, ज़ु, त्लोसाई अउ खोंगज़ई नाम ले तको जाने जाथे।

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