संगी हो नाव ल सुनके तो अजम कर डारे होहू के काकर मंदिर होही। कुकुरदेव मंदिर नाम के संग ओकर ले जुड़े लोक म प्रचलिक किस्सा के थांव लेबो तो जान के बड़ गरब होथे। आवा चलिन खपरी गांव जिहां के कुकुरदेव मंदिर के बारे म मंदिर के महिमा जानबो।
कुकुरदेव मंदिर Kukurdev Madir - छत्तीसगढ़ के बालोद जिला के ग्राम खपरी म छत्तीसगढ़ शासन डहर ले संरक्षित कुकुरदेव मंदिर के निर्माण काल के बारे में बताये जाथे के 200 साल जुन्ना आए। मंदिर ल पथरा-पथरा म तरासे गे हावय। लाल पथरा म कहू-कहू नक्काशी के सुंदर नमुना तको देखे बर मिलथे। भीतरी म छोटकन गर्भगृह तको हाबे। जिहां महादेव बिराजे हावय।
कुकुरदेव मंदिर Kukurdev Madir के संबंध म प्रचलित किस्सा- बालोद अंचल म एक बंजारा के निवास करत रिहिस। ओकर तिर एक ठी पोसवा कुकुर रिहिस। ओ बंजारा ह उहां के राजा तिर कुछ रूपिया उधार ले रिहिस। बेरा पोहावत गिस, फेर बंजारा ह राजा के करजा ल नइ चुका सकिस। आखिर म बंजारा ह अपन पोसवा कुकुर ल राजा ल भेट कर दिस।
कुकुर ह बंजारा ले गजब मया करय ये सेती रोज भाग के आ जावय। बंजारा फेर अमरावय, कुकुर फेर आ जावय। बंजारा ह अपन कुकुर ले हलाकान होगे अउ आखरी पइत चेतावत किहिन- 'मैं तोर ले गजब मया करथंव तोर बिना नइ रेहे सकवं। फेर राजा के मोर उपर करजा हावय ये सेती तोला राजा ल भेट करे हंव। अउ अब कहू दूबारा लहुंट के तै आबे त तोला जान से मार देहूं।' अइसे चेताये के बाद कुकुर ल बंजारा ह राजा ल सउप के आगे।
उही रात राजा के महल म चोरी होगे। चोर मन राजमहल ले कीमती खजाना ल लूटके लेगे। जब कुकुर गम पइस तो चुपे-चुप चोर मन के पीछू-पीछू जाके पासत रिहिस। बिहनिया होइस त कुकुर ह राजा ल खजाना के ठउर तक लेकिन जिहा चोर मन जमीन म गड़िया के राखे रिहिस। कुकुर ह खजाना के पता बताये के संग ही चोर मनके तको चिन्हारी करिस। खजाना मिलगे, चोर मन पकड़ागे। राजा ह कुकुर के काम ले बहुत खुश होगे।
कुकुर के इमानदारी ले खुश होके राजा ह ओला आजाद करत किहिन- ' मैं तोर काम ले खुश हावं, तै जा बेटा अब अपन मालिक करा। मैं तोला आजाद करत हवं।' राजा के आज्ञा पाके कुकुर बंजारा तिर लहुट आथे। कुकुर ल फेर अपन तिर पाके बंजारा के जीव म आगी बर जथे। उठाथे दू हत्था लउठी अउ कुकुर के मुड़ म कचार देथे। कुकुर के उही मेर परान छूट जथे। कुकुर के मरे के बाद लोगन मनले आरो मिलिस के राजा ह महल म चोरी के घटना ले खुश होके आजाद करे रिहिस।
बंजारा ल चोरी वाले घटना के थोरको गम नइ रिहिस। बपरा पछतावत रहिगे। ये बात के पता जब राजा ल चलिस त वहू कुकुर के अंतिम दर्शन करे खातिर पहुंचिस अउ पूरा राजकीय सम्मान के संग ओकर अंतिम संस्कार करिस। उही ठउर म ओकर मठ बनाइस अउ ओकर सुरता एक ठी मंदिर तको बनवाइस जेन 'कुकुरदेव' मंदिर के नाम ले जाने गिस।
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