दामाखेड़ा के नाम अब ‘कबीर धर्म नगर दामाखेड़ा’, सतगुरू कबीर संत समागम म मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के घोसना

अंजोर
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दामाखेड़ा के नाम अब ‘कबीर धर्म नगर दामाखेड़ा’, सतगुरू कबीर संत समागम म मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के घोसना


अंजोर.दामाखेड़ा,ए। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय बलौदाबाजार-भाटापारा जिला के दामाखेड़ा म माघपूर्णिमा के मउका म आयोजित होए वाला सद्गुरू कबीर संत समागम समारोह म सामिल होइस। धर्म गुरू पंथश्री प्रकाश मुनि नाम साहेब ह मुख्यमंत्री के रूप म पहिली दफा दामाखेड़ा आगमन म साय के कबीरपंथी समाज के तनि ले आत्मीय स्वागत करिन। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ह ए मउका म दामाखेड़ा के नाम कबीर धर्म नगर दामाखेड़ा करे के घोसना करिस। ओमन पहिली म मंजूर 22 करोड़ रूपिया ले जादा लागत ले बने वाला कबीर सागर के बनाये बुता म तेजी लाने के निर्देश दिस।

साय ह किहिन के दामाखेड़ा के 10 किलोमीटर के परिधि म कोनो तको नया औद्योगिक प्रतिष्ठान सुरू न हो येकर खातिर विचार करे जाही। समारोह म मुख्यमंत्री साय ह पंथश्री हुजूर प्रकाश मुनि नाम साहेब ले छत्तीसगढ़ के तरक्की अउ खुसयाली के खातिर आशीर्वाद लिस। ए मउका म उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा, केबिनेट मंत्री दयाल दास बघेल, सांसद सुनिसल सोनी, भाटापारा विधायक इंद्र कुमार साव, लुण्ड्रा विधायक प्रमोद मिंज, भाटापारा पहिली विधायक शिवरतन शर्मा, पहिली जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती लक्ष्मी वर्मा ह तको दरसन करके गुरू ले आशीर्वाद लिन।

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ह अपन उद्बोधन म किहिन के छत्तीसगढ़ प्रदेस के मुख्यमंत्री के जुमेदारी मोला मिले  हावय ए जुमेदारी ले जनता के सेवा अउ प्रदेस के विकास के खातिर हमेशा तत्पर रइहूं। तहू मन सबो के विश्वास अउ सहयोग ले प्रदेस म विकास के गंगा बहाबोन। ओमन ह किहिन के नानपन ले ही मोर जुड़ाव कबीर पंथ ले रिहिन हावय अउ चौका आरती म सामिल होवत रिहिन हवं। मोर गृह गांव बगिया म कबीर पंथ के मुनी मनके पदार्पण होइस हावय जेन मोर खातिर सौभाग्य के बात हावय। ओमन किहिन के एक छोटे ले गांव के किसान के बेटा के तंहू मन लोगन ह मुख्यमंत्री के बड़ा जुमेदारी दे हावय। ए चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारी म खरा उतरने म खातिर तंहू मन सबो के सहयोग अउ मार्गदर्शन मिलत रिहिन। जेन रकम ले ले मोदी जी के गारंटी म आपने विश्वास जताइस हावय ओला आगू तको कायम रखत होइस सेवा के मउका देत रइही। हम सब मिलके छत्तीसगढ़ के विकास के पथ म आगू ले जाही।

उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा ह किहिन के हमर सरकार ह सिरिफ 2 महीना म ही लंबा समय ले रुके बड़े बड़े काम के पूरा करे  हावयं। ए बखत म 18 लाख प्रधानमंत्री घर के स्वीकृति, महतारी वंदन योजना अउ युवा मन के मांग म पीएससी परीक्षा म होइस गड़बड़ी के सीबीआई जांच जइसे बड़े काम करे  हावय। ओमन किहिन के हमर सरकार विकास बुता के खातिर प्रतिबद्ध हावय अउ निरन्तर विकास के काम होवत रइही। ओमन किहिन के धर्मनगर दामाखेड़ा कबीरपंथियों के आस्था के एक प्रमुख केन्द्र हावय। सरी दामाखेड़ा के विकास के खातिर वचनबद्ध हावय। इहां दरसन के खातिर आने वाला देश-विदेश के दरस करइया दामाखेड़ा के मधुर सुरता लेके वापस लहुटही। 

समारोह के खाद्य मंत्री दयाल दास बघेल, पहिली विधायक शिवरतन शर्मा ह तको सम्बोधित करिन। ए मउका म नवोदित वंशाचार्य उदित मुनि साहेब, गुरूगोसांई भानुप्रताप साहब, दामाखेड़ा के पहिली सरपंच कमलेश साहू, कलेक्टर चंदन कुमार, पुलिस अधीक्षक सदानंद कुमार, डीएफओ मयंक अग्रवाल, जिला पंचायत सीईओ नम्रता जैन अपर कलेक्टर बीसी एक्का अकताहा पुलिस अधीक्षक हरीश यादव,सहित जनप्रतिनिधि गण अउ दरस करइया बड़े संख्या म उपस्थित रिहिस।

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Information about Damakheda- Damakheda is a pilgrimage site of Kabirpanthis near Raipur, the capital of Chhattisgarh. It is a small village situated at a distance of 10 km from Simga on Raipur-Bilaspur road. It is considered to be the biggest center of faith of Kabirpanthis. Devotees from all over the country and the world come here for darshan.
It is believed that Kabir Math was established here 100 years ago by Guru Ugranam Saheb, the 12th Guru of Kabirpanth. Kabir hut and building have been constructed near the mausoleum. In these, poems, couplets and quatrains etc. have been written very artistically.

दामाखेड़ा के बारे में जानकारी-

दामाखेड़ा छत्तीसगढ़ के राजधानी रायपुर के रायपुर-बिलासपुर सड़क म परथे। येहा बलौदाबाजार-भाटापारा जिला के बड़ पबरित तिरथ आए। देश के कबीरपंथी मन बर येहा सबले बड़का तीर्थस्थल आए। लोगन मन रायपुर-बिलासपुर सड़क मार्ग म सिमगा ले 10 किमी के दूरी एक छोटेेसे ग्राम दामाखेड़ा आसानी ले पहुंच सकथे। इहां देश-दुनिया से श्रद्धालु दर्शन करे खातिर आथे। 

धार्मिक मान्‍यता-

अइसे मनता हाबे के आज ले 100 बच्‍छर पहिली इहां कबीरपन्थ के 12 वां गुरु गुरु उग्रनाम साहब डहर ले कबीर मठ के स्थापना करे गे रिहिस। समाधि स्थल के तिर म ही कबीर कुटिया अउ भवन बनाये गे हावय। जेमा कविता, दोहा अउ चौपाई आदि बड़ कलात्मक रूप लिखे गे हावय। 

कबीरदास कौन है ?

कबीरदास या कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल के निर्गुण शाखा के ज्ञानमार्गी उपशाखा के महानतम कवि थे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। वे एक सर्वोच्च ईश्वर में विश्वास रखते थे। उन्होंने सामाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की। कबीर पंथ नामक सम्प्रदाय इनकी शिक्षाओं के अनुयायी हैं।

कबीर साहेब जी के प्रसिद्ध दोहे:

हाड़ चाम लहू ना मेरे, जाने कोई सतनाम उपासी।
तारन तरन अभय पद दाता, मैं हूं कबीर अविनाशी।।

                भावार्थ: कबीर साहेब जी इस वाणी में कह रहे हैं कि मेरा शरीर हड्डी और मांस का बना नहीं है। जिसको मेरा द्वारा दिया गया सतनाम और सारनाम प्राप्त है, वह मेरे इस भेद को जानता है। मैं ही सबका मोक्षदायक हूँ, तथा मैं ही अविनाशी परमात्मा हूँ।

क्या मांगुँ कुछ थिर ना रहाई, देखत नैन चला जग जाई। 
एक लख पूत सवा लख नाती, उस रावण कै दीवा न बाती।

                भावार्थ: यदि एक मनुष्य अपने एक पुत्र से वंश की बेल को सदा बनाए रखना चाहता है तो यह उसकी भूल है। जैसे लंका के राजा रावण के एक लाख पुत्र थे तथा सवा लाख नाती थे। वर्तमान में उसके कुल (वंश) में कोई घर में दीप जलाने वाला भी नहीं है। सब नष्ट हो गए। इसलिए हे मानव! परमात्मा से तू यह क्या माँगता है जो स्थाई ही नहीं है।

सतयुग में सतसुकृत कह टेरा,  त्रेता नाम मुनिन्द्र मेरा। 
द्वापर में करुणामय कहलाया, कलयुग में नाम कबीर धराया।।

                    भावार्थ: कबीर परमेश्वर चारों युगों में आते हैं। कबीर साहिब जी ने बताया है कि सतयुग में मेरा नाम सत सुकृत था। त्रेता युग में मेरा नाम मुनिंदर था द्वापर युग में मेरा नाम करुणामय था और कलयुग में मेरा नाम कबीर है।

कबीर, पत्थर पूजें हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार। 
तातें तो चक्की भली, पीस खाये संसार।।

                    भावार्थ: कबीर साहेब जी हिंदुओं को समझाते हुए कहते हैं कि किसी भी देवी-देवता की आप पत्थर की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करते हैं जो कि शास्त्र विरुद्ध साधना है। जो कि हमें कुछ नही दे सकती। इनकी पूजा से अच्छा चक्की की पूजा कर लो जिससे हमें खाने के लिए आटा तो मिलता है।

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान। 
मोल करो तलवार का, पड़ी रहन दो म्यान ।।

                    भावार्थ: परमात्मा कबीर जी हिंदुओं में फैले जातिवाद पर कटाक्ष करते हुए कहते थे कि किसी व्यक्ति से उसकी जाति नहीं पूछनी चाहिए बल्कि ज्ञान की बात करनी चाहिए। क्योंकि असली मोल तो तलवार का होता है, म्यान का नहीं।

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर। 
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।।

                    भावार्थ: कबीर साहेब जी अपनी उपरोक्त वाणी के माध्यम से उन लोगों पर कटाक्ष कर रहे हैं जो लम्बे समय तक हाथ में माला तो घुमाते है, पर उनके मन का भाव नहीं बदलता, उनके मन की हलचल शांत नहीं होती। कबीर जी ऐसे व्यक्ति को कहते हैं कि हाथ की इस माला को फेरना छोड़ कर मन को सांसारिक आडंबरों से हटाकर भक्ति में लगाओ।

मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारम्बार । 
तरवर से पत्ता टूट गिरे, बहुरि न लागे डारि ।।

                    भावार्थ: परमात्मा कबीर जी हिन्दू और मुस्लिम दोनों को मनुष्य जीवन की महत्ता समझाते हुए कहते हैं कि मानव जन्म पाना कठिन है। यह शरीर बार-बार नहीं मिलता। जो फल वृक्ष से नीचे गिर पड़ता है वह पुन: उसकी डाल पर नहीं लगता। इसी तरह मानव शरीर छूट जाने पर दोबारा मनुष्य जन्म आसानी से नही मिलता है, और पछताने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता।

पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात । 
एक दिना छिप जाएगा, ज्यों तारा परभात ।।

                    भावार्थ: कबीर साहेब लोगों को नेकी करने की सलाह देते हुए इस क्षणभंगुर मानव शरीर की सच्चाई लोगों को बता रहे हैं कि पानी के बुलबुले की तरह मनुष्य का शरीर क्षणभंगुर है। जैसे प्रभात होते ही तारे छिप जाते हैं, वैसे ही ये देह भी एक दिन नष्ट हो जाएगी।

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सबो पाठक ल जोहार..,
हमर बेवसाइट म ठेठ छत्तीसगढ़ी के बजाए रइपुरिहा भासा के उपयोग करे हाबन, जेकर ल आन मन तको हमर भाखा ल आसानी ले समझ सके...
छत्तीसगढ़ी म समाचार परोसे के ये उदीम कइसे लागिस, अपन बिचार जरूर लिखव।
महतारी भाखा के सम्मान म- पढ़बो, लिखबो, बोलबो अउ बगराबोन छत्तीसगढ़ी।

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