चल किंजर आबो : तुरतुरिया-गिरौदपुरी

अंजोर
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चल किंजर आबो : तुरतुरिया-गिरौदपुरी
चल किंजर आबो : तुरतुरिया-गिरौदपुरी


ए साल शीतकालीन छुट्टी म 23 दिसंबर के हमन ल इसकुल के 50 झन लइका संग तुरतुरिया धाम के यात्रा करे के सौभाग्य मिलिस। बिहनिया आठ बजे हमन बस म बइठ के रवाना होएन। महासमुंद, तुमगांव अउ सिरपुर होवत हमर बस ह लगभग 12 बजे तुरतुरिया पहुँचिस।

तुरतुरिया धाम ह रायपुर ले 84 किमी, बलौदाबाजार ले 29 किमी, कसडोल ले 12 किमी, अउ सिरपुर से 23 किमी की दूरिहा म हे। कतको झन मन एला सुरसुरी गंगा घलो बोलथे। ये जघा ह जंगल के बीच प्राकृतिक दृश्य ले भरपूर एक मनोहारी तीर्थ आय, जउन चारों खुँट ले पहाड़ ले घेराय हे। एखरे तीर म बारनवापारा अभ्यारण्य घलो हाबे। तुरतुरिया बहरिया नामक गांव के तीर म बलभद्री नरवा मेर हाबे। जनश्रुति हे के त्रेतायुग म इही मेर ऋषि वाल्मीकि के आश्रम रिहिस अउ भगवान राम अउ माता सीता के पुत्र लव अउ कुश के जनम इहें होय रिहिस।

...तुरतुरिया पहुँच के सबले पहिली हमन पेटपूजा करेन। ओखर बाद वाल्मीकि आश्रम दर्शन करे बर पहुँचेन। इहाँ वाल्मीकि ऋषि अउ लव-कुश के मूर्ति बने हे।

तुरतुर-तुरतुर के आवाज आना अउ तुरतुर-तुरतुर बोहाय के सेती नाँव परिस तुरतुरिया। बलभद्री नरवा ह पहाड़ी के बीच ले सुरंग ले होवत पातर धार के रूप म बोहाथे तौ तुरतुर-तुरतुर के आवाज होथे। एखर मुँह ल गोमुख के आकार दे दे गे हे। गोमुख ले पानी एक कुंड म गिरथे।

वाल्मीकि आश्रम के जेवनी बाजू म एक ठन नदिया घलो बोहाथे। वो मेर एक झन दुकानदार संग मोर गोठ-बात होइस। नदिया के नाँव पूछेंव तौ नदिया के नाँव बताइस 'बालन नदी'। हमर देश के धार्मिक अउ सांस्कृतिक परंपरा हे के हर तिरिथ धाम म मेला जरूर भराथे। इही अनुमान ले मैं बात के ओरी ल लमाएँव- 
"इहाँ मेला घलो भराथे का जी?"
...हव भराथे।"
"कब भराथे?
...छेरछेरा पुन्नी के।"
"के दिन ले चलथे?"
...तीन दिन ले"

खैर! हमन तो छेरछेरा पुन्नी के दू हप्ता पहिली पहुँचे रेहेन।

बालन नदी ल नाहकबे तौ आगू एक ठन पहाड़ी म देवी के मंदिर हे। मैं तो अपन माड़ी के तकलीफ के सेती पहाड़ी म नइ चढ़ पाएँव। हमर संगवारी अउ लइका मन चढ़िन। ऊहाँ फोटोग्राफर मन के जम के कमई होथे। वोमन फोटो खींच के तुरते प्रिंट निकाल के देथे। ये यात्रा म सबले जादा समय उही पहाड़ी म लगिस। 

...इहाँ कलमुँहा बेंदरा के भरमार हे जउन मन खाय-पीए के चीज पाय के लालच म झूमे रहिथे। यात्री मन घलो बेंदरा मन ल खजानी खवाय म कोनो कमी नइ करय।

साढ़े तीन बजे हमन तुरतुरिया ले वापिस होगेन। हमर ये यात्रा म दू ठी पड़ाव म संघरे के योजना रिहिस। अगला पड़ाव रिहिस गिरौदपुरी के कुतुबमीनार ले ऊँच जैतखाम। फेर समय ल देख के जाना हे के नइ जाना हे ये बात लेके बहुत बहस होइस। लइका मन तो जायच के बात करिन। बहुत अगुन-छगुन के बाद गिरौदपुरी घलो जाना तय होगे। ड्राइवर ह बस के मुँह ल गिरौदपुरी के सड़क म मोड़ दिस। 

...कुतुबमीनार ले ऊँच जैतखाम ल तीर म जा के देखे के साध पूरा होइस। देर संझौती लगभग 6 बजे हमन घर बर वापसी करेंन।

ये यात्रा के एक खास बात बताय बिना ये यात्रा के वर्णन अधूरा माने जाही। वो बात हे बस म बइठे-बइठे भेल बना के खाना। ये यादगार घटना हमर जीवन के किताब म दर्ज हो गे हे। रात के साढ़े दस बजे हमर ये यात्रा सम्पन्न होइस। हमन सब शिक्षक-विद्यार्थी एक सफल, यादगार यात्रा के आनंद ल बटोरे अपन-अपन घर म दाखिल हो गे रेहेन।
-दिनेश चौहान
वरिष्ठ साहित्यकार, राजिम

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