![]() |
| चापड़ा चटनी ह हाबे प्रोटीन, आयरन अउ कैल्सियम के भरमार |
अंजोर.सुकमा। बस्तर के वनांचल म रहइया लोगन लाल रंग के (चांटी) चींटी ल खाथे, ये बात ल तो सुनेच होहू। हव सिरतोन म लाल चांटी ल चटनी पीस के खाथे। चटनी बनाये के खातिर एमे हरियर मिर्चा, अदरक, लसुन, नमक, हरा धनिया के जरुरत होवत हावय। वइसने अपन सुविधा के मुताबिक एला आजकल लोगन मिक्सी म तको पिसा करत हावय। येमा आम बोलचाल के भाषा हल्बी म ‘चापड़ा’ चटनी केहे जाथे।
सुकमा जिला के कई गांव सिल लोड़हा म ये चटनी के पिस के तइयार करथे। ए कोति म ए चटनी ल सामान के संग कच्ची हल्दी के इस्तेमाल तको करे जाथे जेकर ले ए चपड़ा चटनी के सुवाद अउ बढ़ जाथे। लाल रंग के चांटी आदिवासी मन के खास पसंदिता खान-पान म सामिल हावय।
अंग्रेजी म ‘रेड आंट’ अउ गोंडी बोलिन म ‘अलाइग’ केहे जाथे। ये लाल रंग के चांटी आमतौर म सरगी, आम, महुआ, करिया जामुन के पेड़ म अपन घर बनाथे। ये सेती काबर के ये पेड़ के पत्ता बड़का होवत हावय। एला पेड़ ले खल्हे गिराये के खातिर बांस ले बने लाठ के इस्तेमाल करे जाथे। चांटी के डहर ले बनाए घर ल ‘गुड़ा’ केहे जाथे जेन बहुत कड़ा होथे, फेर खल्हे गिरे बगरे संका रिथे इही सेती एला कपड़ा या बांस ले बने बरतन म झोके जाथे। चांटी बगर जाथे त चाब तको सकत हावय। फेर ये बिलकुल हानिकारक नइ होवय।


सबो पाठक ल जोहार..,
हमर बेवसाइट म ठेठ छत्तीसगढ़ी के बजाए रइपुरिहा भासा के उपयोग करे हाबन, जेकर ल आन मन तको हमर भाखा ल आसानी ले समझ सके...
छत्तीसगढ़ी म समाचार परोसे के ये उदीम कइसे लागिस, अपन बिचार जरूर लिखव।
महतारी भाखा के सम्मान म- पढ़बो, लिखबो, बोलबो अउ बगराबोन छत्तीसगढ़ी।