कब है छठ पर्व, छइठ या षष्ठी पूजा |
2022 म छठ पूजा के परब 28 अक्टूबर 2022 ले सुरू होवत हाबे जेन 31 अक्टूबर 2022 तक चलही। हरेक साल ये तिहार देवारी के छठ म कातिक महीना के अंजोरी पाख के षष्ठी तिथि ले सुरू होवत हावय। चार दिन तक चले वाला ए परब म छठी मैया अउ सूर्य देव के पूजा होवत हावय। उत्तरत भारतवासी ए तिहार ल प्रमुखता ले मनात हावय।
खरना का हावय?
कब है छठ पर्व, छइठ या षष्ठी पूजा |
व्रत रखे वाला लोगन एक दिन पहिली प्रसाद के रूप म गन्ना के रस म बने चाउंर के खीर ग्रहण करे के बाद 36 घंटा के व्रत रखत हावय। एला 'खरना' केहे जाथे।
छठ पूजा के 4 दिन म कब-कब का होही ?
छठ 28 अक्टूबर 2022 के नहाए-खाए ले सुरू होही। 29 अक्टूबर 2022 के खरना होही। अउ 30 अक्टूबर के सूर्य के अर्घ्य दे जाही अउ 31 अक्टूबर के बिहनिया म उगते सूर्य के अर्घ्य दे के संग छठ परब के समापन होही।
कब है छठ पर्व, छइठ या षष्ठी पूजा |
छठ पर्व, छइठ या षष्ठीस पूजा-
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के षष्ठी तिथि के मनाये जाना उत्त्र भारत के हिन्दूओं के प्रमुख परब हावय छठ। सूर्योपासना के ये परब मुख्य रूप ले बिहार, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेस अउ नेपाल के तराई क्षेत्र म मनाये जाथे।
छठ पूजा सूर्य, प्रकृति,जल, वायु अउ उंकर बहिनी छठी मइया के समर्पित हावय ताकि ओला पृथ्वी म जीवन के देवतायों के बहाल करे के खातिर धन्यवाद, छठी मैया, जेला मिथिला म रनबे माय तको किहिन जाथे, भोजपुरी म सबिता माई अउ बंगाली म रनबे ठाकुर बुलाइन जाथे । पार्वती के छठा रूप भगवान सूर्य के बहिनी छठी मैया के तिहार के देवी के रूप म पूजा जाथे । ये चंद्र के छठे दिन काली पूजा के छह दिन बाद छठ मनाये जाथे।
तिहारके अनुष्ठान ठोस हावयं अउ चार दिन के बखत म मनाए जात हावयं। एमे पवित्र स्नान, उपवास अउ पीने के पानी (वृत्ता) ले दूरिहा रहना, लंबा समय तक पानी म खड़ा होना, अउ प्रसाद (प्रार्थना प्रसाद) अउ अर्घ्य देना सामिल हावय। छठ महापर्व के व्रत के स्त्री - पुरुष - बुढ़े - जवान सबो लोगन करत हावयं।
छठ परब कोन रकम ले मनाते हावयं ?
कब है छठ पर्व, छइठ या षष्ठी पूजा |
ये परब चार दिन के हावय। भैयादूज के तीसरे दिन ले ये आरम्भ होवत हावय। पहिली दिन सेन्धा नमक, घी ले बना होइस अरवा चाउंर अउ कद्दू के सब्जी प्रसाद के रूप म लिस जात हावय। अगले दिन ले उपवास आरम्भ होवत हावय। व्रति दिनभर अन्न-जल त्याग करके संझा करीब ७ बजे ले खीर बनाकर, पूजा करे के बाद प्रसाद ग्रहण करत हावयं, जेला खरना कहत हावयं। तीसरे दिन डूबते होइस सूर्य के अर्घ्य यानी दूध अर्पण करत हावयं। आखरी दिन उगते होइस सूर्य के अर्घ्य चढ़ाते हावयं। पूजा म पवित्रता के बिसेस धियान रखे जाथे ; लहसून, प्याज वर्जित होवत हावय। जेन घर म ये पूजा होवत हावय, उहाँ भक्तिगीत गाये जात हावयं।अंत म लोगन के पूजा के प्रसाद दे जाथे।
नहाय खाय
छठ परब के पहिली दिन जेला ‘नहाय-खाय’ के नाम ले जाये जाथे,उसकी शुरुआत चइत या कातिक महीना के चतुर्थी कातिक शुक्ल चतुर्थी ले होवत हावय। सबले पहिली घर के सफाई करके ओला पवित्र करे जाथे। उंकर बाद व्रती अपन लकठा म स्थित गंगा नदी,गंगा के सहायक नदी या तरिया म जाके स्नान करत हावय।
खरना
कब है छठ पर्व, छइठ या षष्ठी पूजा |
छठ परब के दूसरा दिन जेला खरना या लोहंडा के नाम ले जाये जाथे,चैत्र या कातिक महीना के पंचमी के मनाये जाथे । ए दिन व्रती पुरे दिन उपवास रखत हावय, ए दिन व्रती अन्न त दूरिहा के बात हावय सूर्यास्त ले पहिली पानी के एक बूंद तक ग्रहण नइ करत हावय। संझा के चाउंर गुड़ अउ गन्ने के रस के प्रयोग करके खीर बनाये जाथे।
संध्या अर्घ्य
कब है छठ पर्व, छइठ या षष्ठी पूजा |
छठ परब के तीसरा दिन जेला संझा अर्घ्य के नाम ले जाये जाथे,चैत्र या कातिक शुक्ल षष्ठी के मनाये जाथे । पुरे दिन सबो लोगन मिलके पूजा के तइयारी करत हावय। छठ पूजा के खातिर बिसेस प्रसाद जैसेठेकुआ,[25] चाउंर के लड्डू जेला कचवनिया तको किहिन जाथे , बनाये जाथे । छठ पूजा के खातिर एक बांस के बने हुयी टोकरी जेला दउरा कहत हावय म पूजा के प्रसाद, फल डालकर देवकारी म रख दे जाथे । उहां पूजा अर्चना करे के बाद संझा के एक सूप म नारियल,पांच रकम ले के फल,और पूजा के आन सामान लेके दउरा म रख करके घर के पुरुष अपन हाथो ले उठाके छठ घाट म ले जाथे। ये अपवित्र न हो इही सेती एला सर के ऊपर के कोति रखत हावय। छठ घाट के कोति जात होइस रद्दा म प्रायः महिलाये छठ के गीत गाते होइस जात हावय।
उषा अर्घ्य
चौथे दिन कातिक शुक्ल सप्तमी के बिहनिया उदियमान सूर्य के अर्घ्य दे जाथे । सूर्योदय ले पहिली ही व्रती लोगन घाट म उगते सूर्यदेव के पूजा बर पहुंच जाथे अउ संझा के ही रकम ले उंकर पुरजन-परिजन उपस्थित रिथें। संझा अर्घ्य म अर्पित पकवान के नवा पकवान ले प्रतिस्थापित करके दे जाथे फेर कन्द, मूल, फलादि उहे रिथें। सबो नियम-विधान सांध्य अर्घ्य के रकम ले ही होवत हावयं। सिरिफ व्रती लोगन ए समय पूरब के तनि मुंहकर पानी म खड़े होवत हावयं अउ सूर्योपासना करत हावयं। पूजा-अर्चना समाप्तोपरान्त घाट के पूजन होवत हावय। उहाँ उपस्थित लोगन म प्रसाद बाटे करके व्रती घर आ जाथे अउ घर म तको अपन परिवार उक के प्रसाद बाटे करत हावयं।
छठ गीत
लोकपर्व छठ के आने-आने मउकाों म जइसे प्रसाद बनाते समय, खरना के समय, अर्घ्य दे के खातिर जात होइस, अर्घ्य दान के समय अउ घाट ले घर लौटते समय केऊ सुमधुर अउ भक्ति-भाव ले पूरा लोकगीत गाये जात हावयं।
'केलवा जे फरेला घवद से, ओह म सुगा मेड़राय
काँच ही बाँस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए'
सेविले चरन तोहार हे छठी मइया। महिमा तोहर अपार।
उगु न सुरुज देव भइलो अरग के बेर।
निंदिया के मातल सुरुज अँखियो न खोले हे।
चार कोना के पोखरवा
हम करेली छठ बरतिया ले उनखे लागी।
संदर्भ- साभार विकिपीडिया
और ये जाने-
https://m.youtube.com/watch?v=FF4qZfDDbho
सबो पाठक ल जोहार..,
हमर बेवसाइट म ठेठ छत्तीसगढ़ी के बजाए रइपुरिहा भासा के उपयोग करे हाबन, जेकर ल आन मन तको हमर भाखा ल आसानी ले समझ सके...
छत्तीसगढ़ी म समाचार परोसे के ये उदीम कइसे लागिस, अपन बिचार जरूर लिखव।
महतारी भाखा के सम्मान म- पढ़बो, लिखबो, बोलबो अउ बगराबोन छत्तीसगढ़ी।