pitru paksha : पितर देवता के सुमिरन परब, शनिवार 10 सितंबर ले रविवार 25 सितंबर तक पितृ पक्ष म आही पुरखामन

अंजोर
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पितर पाख (पितृ पक्ष) छत्तीसगढ़ म तको भादो के अंधियारी पाख (शुक्ल पक्ष) ले सुरू होथे जेना ‘पितर-बइसकी’ कहे जाथे। येहा पूरा पाख भर याने अमावस्या तक चलथे अउ इही आखरी के दिन म पितर देवता मनके विदा होथे जेला ‘पितर-खेदा’ कहे जाथे। पितर पाखभर घर के दुवारी म पुरखा मन खातिर चउक पुर के पान, दतुन, तरोई फूल अउ कासी माड़े घरो-घर दिखही। येहा पुरखा मनला सुमिरन करे के परब आए, देवलोक वासी पुरखा सियान मनके सुरता करत उंकर मया असीस पाये के परब आए। ‘पितर-बइसकी’ माने गणेश विसर्जन (अनंत चतुर्दशी) के दिन, भादो के अंधियारी ले लेके लगते कुंवार (कुंवार प्रारंभ) तक ‘पितर पाख’ मनाये जाथे। पाखभर घर के बिते सियान मन ओसरीपारी आथे कोनो दिन बबा, त कोनो दिन बाबू के बबा, कका दाई, (दादा-दादी) अइसे तीन पीढ़ी के पितर देवता मन धरती म आथे, ‘पितर-खेदा’ के दिन सबो फेर देवधाम चल देथे।

पितर पाख कब हावय-

एसो पितर पाख शनिवार 10 सितंबर ले रविवार 25 सितंबर तक हाबे। येला छत्तीसगढ़ के बाहिर पितृ पक्ष, श्राद्ध पर्व के रूप म देशभर म मनाए जाथे, छत्तीसगढ़ म ‘पितर पाख’ के रूप म मनाथे। देवलोकवासी पुरखा मनके सुरता के परब आए पितर ह, केहे जाथे के ये पाख म पुरखा मन धरती म आथे।

पितर देवता के आसिस- 

अइसे मानता हावय के जेन मन अपन पुरखा ल सुरता करके पानी नइ देवय ओमन ल पितर दोस लगथे। अऊ श्राद्ध करे ले ही पितरदोस ने मुक्ति मिलथे। येकर ले उंकर मन ल तको शांति मिलथे अउ हांसी-खुसी ले पितर देवता मन घर-परिवार के खुसहाली के आसिस देके जाथे।

कब-कब आथे पितर- 

पितर ह तो पाख भर चलथे अउ तिथि मुताबिक पुरखा मन ल सुरता करे जाथे। कोन दिन पितर माने जाए ये हा सियान के बिते के दिन ले रिथे। एक्कम, दूज, तिज, चउत पंचमी, छट, साते, आठे जइसे-जइसे बिते रिथे तइसे-तइसे सियान मन ल पितर माने जाथे। नवमीं के दिन सबो सियनहिन मनला एके दिन मानथे। जेन मनके बिते दिन के सुरता नइये तेन मनला आखरी म मान-गवन करके पितर-खेदा के सोरियाथे।

पितर बर जेवन-

पितर पाख जइसे के येहा पुरखा मनला सुरता करे के परब आए तव सियान मनके पसंद के तको खियाल करे जाथे। बरा, बोबरा, सोहारी, खीर अउ तरोई साग तो चुरबे करथे अऊ संग म सियान के पसंद के भोजन तको बनाके देथे।

पहिली पितर म पितर नेवता अउ पितर भात-

छत्तीसगढ़ म बिते सियान ल पहिली पितर माने खातिर नता-गोतर के हियाव करके नेवता पठोय जाथे। डोकरा बबा मनला जेन दिन उंकर स्वर्गवास होए रिथे उही तिथि के पितर मानथे। अउ डोकरी दाई मनला नवमीं के दिन पितर मिलाथे। पितर मिलाथे ते दिन तरपन करके पितर मनला खाए बर देके बाद गांव कुटुम ल तको पितर भात खवाथे। 

जेवन म उरिद दार अउ तरोई के महत्ता : वरिष्ठ साहित्यकार सुशील भोले के अनुसार-

‘पितर पाख के लगते माई लोगिन मन घर के दुवारी ल बने गोबर म लीप के वोमा चउंक, रंगोली आदि बनाथें अउ फूल चढ़ा के सजाथें। वोकर पाछू उरिद दार के बरा बनाथें जेमा नून नइ डारे जाय। संग म बोबरा, गुरहा चीला आदि घलोक बनाए जाथे अउ साग के रूप म तरोई ल आरुग तेल म छउंके जाथे।

जानबा होवय के ए पाख म तरोई के विशेष महत्व होथे। घर के दरवाजा म जेन गोबर लीप के चउंक पूरे जाथे वोमा आने फूल मन के संगे-संग तरोई के फूल घलोक चढ़ाए जाथे। वइसने साग तो सिरिफ तरोई ल तेल म छउंक के दिए जाथे अउ पितर मनला जेन जगा हूम-धूप अउ बरा-बोबरा दिए जाथे उहू ल तरोई के पान म रख के दिए जाथे।

अइसे मानता हे के तरोई तारने वाला जिनिस आय काबर के ये शब्द के उत्पत्ति तारन ले तरोई होए हे। वइसे तरोई ह पाचक अउ स्वादिष्ट होथे जेमा अनेकों किसम के पुस्टई होथे फेर बने नरम-नरम घलोक होथे, जेला भोभला डोकरा-डोकरी मन आसानी के साथ पगुरा के लील डारथें। आखिर पितर मन ला तो हमन उहिच रूप म सुरता करथन न।

वइसे तो अपन पुरखा मन के कई पीढ़ी तक के सुरता अउ तरपन करना चाही फेर जे मन अइसन करे म अपन आप ल सक्षम नइ पावंय वोमन पितर पाख म गया जी (बिहार राज्य) म जाके उंकर तरपन करके हर बछर के सुरता अउ तरपन ले मुक्ति पा जथें। अइसे मानता हे के जेकर मन के तरपन ल पितर पाख म गया जी म कर दिए जाथे वोमन ल मोक्ष मिल जाथे, वोकर बाद फेर वोकर मन के तरपन करना जरूरी नइ राहय। वइसे जेकर मन के श्रद्धा अउ सामरथ हे वोमन अपन पुरखा मन के सुरता अउ तरपन गया जी म तरपन करे के बाद घलोक कर सकथें। एमा कोनो किसम के बंधन या दोस नइ माने जाय। तरपन देवइया मनला जल-अरपन करे के बेर उत्ती मुड़ा म मुंह करके जल अरपन करना चाही अउ ए बखत अपन खांध म सादा रंग के कांचा कपड़ा पंछा आदि घलोक रखना चाही।

वइसे तो हिन्दू धर्म अउ रीति रिवाज के मुताबिक पितर मानये के कई विधी बताये गे हावय, फेर लोक जीवन म ग्राम्य मानता के अनुसार जेन प्रचिलित हावय तेनो ह गुनिक सियान मनके चलागन आए ये सेती जेन तइहा समे ले घर के सियान मन मानत आवत हाबे उही मुताबिक परब ल मनाना चाहि। आन देश या राज्य ले देखे जाए तव छत्तीसगढ़ रीति-रिवाज म जादा कुछ अंतर नइ दिखे।

पितर देवता मन खातिर नेवता, चउंक पुरे अंगना म पानी अउ पिड़हा मड़ाके आव-भगत, नदिया-नरवा-तरिया म कासी, तरोई ले तरपन। मन पसंद भोजन म उरिद दार के बरा, अऊ छानही म कउवा मनला देख के दू परोसा उपराहा देना, पुरखा मनके सुघ्घर सुरतांजलि आए।

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पितर देवता कोन होथे ?
अपन घर बिते सियाने मन ही पितर देवता आए। हमन अपन देवलोकवासी पुरखा सियान मनला अइसे आन बखत तो सुरता नइ करे सकन, आन-आन बुता-काम म फदके रिथन तब इही पितर पाखभर ओमन ला देवता बरोबर सुमिरन करत मया आसीस पा‍थन।
पितर के दिन कोन-कोन होथे?
सबो पितर देवता ल एके दिन नइ माने जाए, जेन तिथि के उंकर स्वर्गवास होये रिथे उही दिन माने जाथे। फेर डोकरी मनला अकसर नवमीं के मानथे। 
पितर मनके मया आसीस पाये बर का करना चाहि?
पितर ल जब हम देवता किथन त सउहे उंकर मया आसीस हमन ला मिल जथे। तभो ले उंकर मन पसंद के भोजन परोसे जाथे, छत्तीसगढ़ म बरा-बोबरा के संग तरोई के परंपरा हावय।
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