कुछु बांचे हावय : डॉ. खूबचंद बघेल

अंजोर
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छत्तीसगढ़ राज बनाये के पहिली विचार डॉक्टर साहेब ल अइस तब 28 जनवरी 1956 के दिन नांदगांव म अधिवेसन कराए गीस। ये अधिवेशन छत्तीसगढ़ महासभा के नाव ले होईस इही दिन ह छत्तीसगढ़ राज के पहली दिन अउ पहिली आवाज रहिस हे। इंहा जातिवाद के बीख बगरे रहिस हे तेन ल सकेल के फेंके के जरूरत रहिस हे। इंखर बिगन एकता हो नई सकय अउ छत्तीसगढ़ राज बन नई सकय। बाद म 1967 म डॉक्टर बघेल ह छत्तीसगढ़ भातृसंघ के स्थापना करिस।

राजनांदगांव म छत्तीसगढ़ी महासभा के अधिवेशन ह दाऊ चन्द्रभूषण दास के देख-रेख म होईस। अधिवेसन दू सत्र म होईस। पहिली सत्र के अध्यक्छता बैरिस्टर मोरध्वजलाल श्रीवास्तव ह करे रहिस हे। दूसर सत्र के अध्यक्छता खैरागढ़ के साहित्यकार पदुमलाल पुन्नालाल बख्शीजी करे रहिन हें। ये सम्मेलन म मावलीप्रसाद श्रीवास्तव अउ द्वारिकाप्रसाद तिवारी विप्र सरिख नामी मनखे रहिन हें। नांदगांव के इही सम्मेलन म 28 जनवरी 1956 के दिन छत्तीसगढ़ राज बनाए के प्रस्ताव पारित होईस।

डॉ. रामलाल कश्यपजी ह प्रश्न करिस के- छत्तीसगढ़ी कोन आय? तब डॉ. साहेब कहिन- के जेन छत्तीसगढ़ के हित ल अपन समझथे, छत्तीसगढ़ के मान सम्मान ल अपन मान सम्मान समझथे, तेने ह भासा छत्तीसगढ़ी आय, चाहे वो ह कोनो धरम के होवय, कोनो भासा ल बोलय, कोनो जाति के होवय, कोनो डाहर ले आ के छत्तीसगढ़ म बसे होवय। उंखर चिंतन के बिसय रहिस हे के कइसे छत्तीसगढ़ के भासा साहित्य, संस्कृति अउ लोक परम्परा के रक्छा करना हे। डॉ. बघेल हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत अउ मराठी बिसय के जानकार रहिन हे, फेर छत्तीसगढ़ीच भासा अउ साहित्य ल बढ़ा के सोचय। अपन व्यस्त राजनीति जिनगी ले समय निकाल के लेखन करिन। सबो लेखन सामाजिक परिवेस के रहिस हे। ऊंच नीच, करम छड़हा, जनरैल सिंह नाटक अपन समय के समाज के दरसन कराथे, एखर संग-संग एक लेखक के मन के पीरा घलो दिखथे।

डॉ. साहब के निधन होय के बाद हरि ठाकुर ह लिखे रहिन हें-एक बीमार छत्तीसगढ़ के कुसल डॉक्टर ह छत्तीसगढ़ ल बेमार छोड़ के चल दिस। छत्तीसगढ़ राज के सपना ल मन म ले के चल दिस, जब आज ओखर सपना पूरा होय हे, छत्तीसगढ़ राज बनगे हावय त छत्तीसगढ़ के लोक संस्कृति, साहित्य अउ कला ल ऊंचा उठाना हावय।

आज छत्तीसगढ़ राज बाढ़त हावय, क्रांकीट के जंगल बाढ़त हावय। खेत-खार कमतियात हावय। संस्कृति घलो नंदावत हावय। कला ह बाढ़त हावय। फेर घर द्वार म विदेसी संस्कृति समावत हावय। आज डॉ. साहेब के एक सपना पूरा होय हावय सबले बड़े सपना, फेर राज ल बचाए रखे बर छत्तीसगढ़ ल अपन पहिचान बनाए रखे बर अपन संस्कृति ल बचा के रखना जरूरी हावय। कला जरूरी हावय। आज खान-पान, पहिरावा के संग-संग, नाचा-गम्मत, ल लहुटाय के जरूरत हावय। हमर तीज-तिहार, खेत ल बचाना घलो जरूरी हावय। हर राज के अपन खेल, खान-पान जेवर, कपड़ा, पहिरावा अउ तिहार होथे। येमा दूसर राज के पहिचान ल मिंझारे म हमर पहिचान खतम होवत हावय। जाति अउ भासा दूनो के मतभेद ल खत्म करना घलो जरूरी हावय। कोनो भी क्षेत्र म कट्टरता तोड़थे अउ उदारता जोड़थे। आज धरम, भासा, जाति के प्रति उदार होय के बेरा हावय। छत्तीसगढ़ ह छत्तीसगढ़ ही राहय अपन चिन्हारी के संग तभे डॉ. साहेब के बांचे सपना ह पूरा होही। 
- श्रीमती सुधा वर्मा
गीतांजली नगर, रायपुर 

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