आखिर कइसे मरही रावण..?

अंजोर
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हर बछर रावण ल मारे बर जाथन। रावण ल मार के आथन। दूसइया बछर रावन फेर जिंदा हो जाथे आखिर कइसे? त्रेता जुग म रावण होइस, त्रेता के बाद द्वापर अउ अब कलयुग आगे फेर रावण आज तक नइ मर पाइस। यदि मर जाय रहितिस तब हमन दुबारा वोला मारे बर अउ ओकर पुतला जलाय खातिर काबर जातेंन ..? अब ये चिंता के बात हवय कि आखिर मा ये रावण कब अउ कइसे मरही..?

दरअसल हमन बुराई ऊपर अच्छाई के जीत के प्रतीक के रूप रावण ल जला तो देथन फेर ये संदेश ला या तो हम समझ नइ पावन या जानबूझ के अपन जीवन मे उतारना नइ चाहन। बुराई तो मनखे के भीतर भरे हवय। नाना प्रकार के कुकर्म, चोरी, डकैती, हत्या, लूटपाट, बलात्कार, पराई स्त्री के प्रति गलत भावना रखना ये सब रावणत्व के रूप आय। रावण के दस हाथ, दस मूड़ी अउ बीस आँखी रहिस तभो ओकर नजर केवल एक स्त्री के ऊपर रहिस। फेर वाह ले कलजुगी मानव एक आँखी होके भी न जाने कतका स्त्री ऊपर नजर गड़ाये रहिथे। इन तो त्रेता के रावण ले घलो बड़का होगे हवय। देश मा रोजिना बलात्कार के घटना होत रहिथे।

ये बलात्कारी मन रावण ले भी जादा निर्दयी हे। रावण तो सीता ल अपन महल म राखिस जरूर फेर वोला हाथ तक नइ लगाइस। फेर वाह रे कलजुगी रावण हो तुमन तो रावण ले वो पार होगे हावव। ये कलजुगी रावण मन समाज बर अभिशाप हे। नारी के सतीत्व से खिलवाड़ करने वाला मन ला रावण ले भी बुरा मौत देना चाही। आखिर समाज मे अइसन कुत्सित विचार रखने वाला अतेक रावण कहाँ ले पैदा होगे ये चिंता के बात हे।

रावण के मृत्यु के एक अउ बड़े कारण रहिस अहंकार। महाज्ञानी, महाशक्तिशाली, त्रिलोक विजेता होय के बावजूद रावण के अहंकार वोला ले बूड़िस। फेर आज हमन ये बात ले सीख लेथन का ...? नहीं। जब तक हम लोभ,मोह,मद,अउ अहंकार मा बूड़े रहिबों तब तक हम अपन भीतर के रावण ल नइ मार सकन। रावण के पुतला जलाए ले कुछु नइ मिलय, काबर रावण बाहिर म नहीं भीतर म हवय वोला मारना जरूरी हवय। दूसर के हक ल छीनना, दुख देना,धन अउ बल के घमंड, चारी चुगली, अन्याय, अत्याचार ये सब रावणत्व के प्रतीक आय। येला अपन भीतर ले जब तक नइ निकालबो राम के वास हमर घट म नइ हो सकय। घट घट में है राम बसे .. ये तो सबो सुने हव फेर अइसन दुराचारी मनखे मन के भीतर राम नहीं रावण वास करथे।

अपन अंतस मा राम के वास कराना हवय तब रावणत्व के दुर्गुण ल छोड़ के राम के सदगुन ल अपनाय बर परही। खाली रामायण पढ़े ले का मिलही ? जब तक राम के आदर्श ल अपन जीवन म नइ उतारबो तब तक राम के आराधना भी व्यर्थ ही जाही। राम अउ सीता के जीवन चरित्र ला जीवन म उतारना ही सही मायने मा भगवान राम के पूजा होही। जब तक राम के आदर्श आम जन के भीतर मा नइ बसही तब तक कलजुगी रावण के विनाश असंभव हवय। मनखे तो सब एक आय ओकर चरित्रहीनता ही मनखे ल रावण बना देथे अउ सर्वनाश डहर धकेल देथे।

रावण ल वरदान रहिस कि वोला तीनो लोक मा सुर या असुर कोनो भी नइ मार सकय। तब वोला श्रीराम जी मारिन जो कि मानव रूप म रहिन। वइसने रावण ल मारना हवय त राम के आदर्श ला अपन जीवन म उतारे बर परही। वो राम जेन अपन पिता के आदेश पालन खातिर बिना कोनो सवाल करे राज पाठ छोड़ के 14 बछर बर वनवास चल दिन। अउ आज हमन अपन माता-पिता के बात ल कतका मानथन...? ये सवाल अपन करेजा मा हाथ रख के पूछ्व जवाब मिल जाही।

- अजय अमृतांशु, भाटापारा

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