Pitru Paksha 2020 : पितर पाख आज ले सुरू, छत्तीसगढ़ म तरपन संग पितर भात म बरा अउ तरोई के महत्ता

अंजोर
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रायपुर.2। छत्तीसगढ़ म आज ले सुरू होवत हाबे पितर पाख, घर के दुवारी म पुरखा मन खातिर चउक पुर के पान, दतुन, तरोई फूल अउ काशी माड़े घरो-घर दिखही। येहा पुरखा मनला सुरता करे के परब आए, जेन मन ए दुनिया म नइये। ‘पितर-बइसकी’ माने गणेश विसर्जन के दिन, भादो के अंधियारी ले लेके लगते कुंवार तक ‘पितर पाख’ मनाथे। पाख भर घर के बिते सियान मन ओसरी पारी आथे कोनो दिन बबा, त कोनो दिन बाबू के बबा। अइसे तीन पीढ़ी के पितर देवता मन धरती म आथे, ‘पितर-खेदा’ के दिन सबो फेर देवधाम चल देथे। 

पितर पाख कब हावय-

एसो पितर पाख 2 सितंबर ले सुरू होवत हाबे। येला छत्तीसगढ़ के बाहिर पितृ पक्ष, श्राद्ध पर्व के रूप म देशभर म मनाए जाथे, छत्तीसगढ़ म ‘पितर पाख’ के रूप म मनाथे। देवलोक वासी पुरखा मनके सुरता के परब आए पितर ह, केहे जाथे के ये पाख म पुरखा मन धरती म आथे। 

पितर देवता के आसिस- 

अइसे मानता हावय के जेन मन अपन पुरखा ल सुरता करके पानी नइ देवय ओमन ल पितर दोस लगथे। अऊ श्राद्ध करे ले ही पितरदोस ने मुक्ति मिलथे। येकर ले उंकर मन ल तको शांति मिलथे अउ हासी-खुसी ले पितर देवता मन घर-परिवार के खुसहाली के आसिस देके जाथे।

कब-कब आही पितर- 

पितर ह पाख भर चलथे अउ तिथि मुताबिक पुरखा मन ल सुरता करे जाथे। कोन दिन पितर माने जाए ये हा सियान के बिते के दिन ले रिथे। एक्कम, दूज, तिज, चउत पंचमी, छट, साते, आठे जइसे-जइसे बिते रिथे तइसे सियान मन ल पितर माने जाथे। नवमीं के दिन सबो सियनहिन मनला एके दिन मानथे। जेन मनके बिते दिन सुरता नइये तेन मनला आखरी म मान गुन करके पितर खेदे जाथे।

पितर बर जेवन- 

पितर पाख जइसे के येहा पुरखा मनला सुरता करे के परब आए तव सियान मनके पसंद के तको खियाल करे जाथे। बरा, बोबरा, सोहारी, खीर अउ तरोई साग तो चुरबे करथे अऊ संग म सियान के पसंद के भोजन तको बनाके देथे।  

पहिली पितर अउ पितर भात-

छत्तीसगढ़ म बिते सियान ल पहिली पितर माने खातिर नता-गोतर के हियाव करके नेवता पठोय जाथे। डोकरा मनला जेन दिन उंकर स्वर्गवास होए रिथे उही तिथि के पितर मानथे। अउ डोकरी मनला नवमीं के दिन पितर मिलाथे। पितर मिलाथे ते दिन तरपन करके पितर मनला खाए बर देके बाद गांव कुटुम ल तको पितर भात खवाथे। 

पितर माने के विधी-विधान, जेवन म उरिद दार अउ तरोई के महत्ता : वरिष्ठ साहित्यकार सुशील भोले के अनुसार-



‘पितर पाख के लगते माई लोगिन मन घर के दुवारी ल बने गोबर म लीप के वोमा चउंक, रंगोली आदि बनाथें अउ फूल चढ़ा के सजाथें। वोकर पाछू उरिद दार के बरा बनाथें जेमा नून नइ डारे जाय। संग म बोबरा, गुरहा चीला आदि घलोक बनाए जाथे अउ साग के रूप म तरोई ल आरुग तेल म छउंके जाथे। 

जानबा राहय के ए पाख म तरोई के विशेष महत्व होथे। घर के दरवाजा म जेन गोबर लीप के चउंक पूरे जाथे वोमा आने फूल मन के संगे-संग तरोई के फूल घलोक चढ़ाए जाथे। वइसने साग तो सिरिफ तरोई ल तेल म छउंक के दिए जाथे अउ पितर मनला जेन जगा हूम-धूप अउ बरा-बोबरा दिए जाथे उहू ल तरोई के पान म रख के दिए जाथे। 
अइसे मानता हे के तरोई तारने वाला जिनीस आय काबर के ये शब्द के उत्पत्ति तारन ले तरोई होए हे। वइसे तरोई ह पाचक अउ स्वादिष्ट होथे जेमा अनेकों किसम के पुस्टई होथे फेर बने नरम-नरम घलोक होथे, जेला भोभला डोकरा-डोकरी मन आसानी के साथ पगुरा के लील डारथें। आखिर पितर मन ला तो हमन उहिच रूप म सुरता करथन न।

वइसे तो अपन पुरखा मन के कई पीढ़ी तक के सुरता अउ तरपन करना चाही फेर जे मन अइसन करे म अपन आप ल सक्षम नइ पावंय वोमन पितर पाख म गया जी (बिहार राज्य) म जाके उंकर तरपन करके हर बछर के सुरता अउ तरपन ले मुक्ति पा जथें। अइसे मानता हे के जेकर मन के तरपन ल पितर पाख म गया जी म कर दिए जाथे वोमन ल मोक्ष मिल जाथे, वोकर बाद फेर वोकर मन के तरपन करना जरूरी नइ राहय। वइसे जेकर मन के श्रद्धा अउ सामरथ हे वोमन अपन पुरखा मन के सुरता अउ तरपन गया जी म तरपन करे के बाद घलोक कर सकथें। एमा कोनो किसम के बंधन या दोस नइ माने जाय। तरपन देवइया मनला जल-अरपन करे के बेर उत्ती मुड़ा म मुंह करके जल अरपन करना चाही अउ ए बखत अपन खांध म सादा रंग के कांचा कपड़ा पंछा आदि घलोक रखना चाही।

वइसे तो हिन्दू धर्म अउ रीति रिवाज के मुताबिक पितर मानये के कई विधी बताये गे हावय, फेर लोक जीवन म ग्राम्य  मानता के अनुसार जेन प्रचिलित हावय तेनो ह गुनिक सियान मनके चलागन आए ये सेती जेन तइहा समे ले घर के सियान मन मानत आवत हाबे उही मुताबिक परब ल मनाना चाहि। आन देश या राज्यक ले देखे जाए तव छत्तीरसगढ़ रीजि रिवाज म जादा कुछ अंतर नइ दिखे।’ 

पितर देवता मन खातिर नेवता, चउंक पुरे अंगना म पानी अउ पिड़हा मड़ाके आव-भगत, नदिया-नरवा-तरिया म काशी, तरोई ले तरपन। मन पसंद भोजन म उरिद दार के बरा, अऊ छानही म कउवा मनला देख के दू परोसा उपराहा देना, पुरखा मनके सुघ्घर सुरतांजलि आए।

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