छत्तीसगढ़ के जागरन दूत जागेश्वर प्रसाद के 80वीं जनमदिन म जुरियाइन साहित्य-संस्कृति के सुधीजन

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छत्तीसगढ़ के जागरन दूत जागेश्वर प्रसाद के 80वीं जनमदिन म जुटिन साहित्य-संस्कृति के सुधीजन


छत्तीसगढ़ी जनचेतना, भाषा अस्मिता अऊ सांस्कृतिक जागरन के अगुवा, हमर 'जागरन दूत' श्री जागेश्वर प्रसाद जी के 80वीं जनमदिन राजधानी रायपुर के छत्तीसगढ़ी भवन, हांडीपारा म बड़ सम्मान, आत्मीयता अऊ प्रेरणा ले भरपूर माहौल म मनाय गिस। अइसन ऐतिहासिक मउका म छत्तीसगढ़ के कोना-कोना ले आय साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी, इतिहासकार, लोककलाकार अऊ पत्रकार मन अपन उपस्थिति देके दादा ला बधाई अऊ शुभकामना दीस।

कार्यक्रम के अध्यक्षता राज्य आंदोलनकारी दाऊ जी.पी. चंद्राकर करे रहिन। मुख्य अतिथि के रूप म संस्कृतिकर्मी अशोक तिवारी अऊ विशिष्ट अतिथि के रूप म इतिहासकार डा. के.के. अग्रवाल मंच मा बिराजे रहिन। ये कार्यक्रम म अनिल दुबे (प्रदेश अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ी समाज पार्टी), रसिक बिहारी अवधिया (वरिष्ठ साहित्यकार), राकेश तिवारी (लोकसंगीतज्ञ), चंद्रशेखर चकोर (लोकखेल उन्नायक), डा. कुंजबिहारी शर्मा (वरिष्ठ रंग निर्देशक), जयंत साहू (छत्तीसगढ़ी साधक), गोविंद धनगर (गीतकार), आदर्श चंद्राकर, डा. मिलन, सुरेंद्र शर्मा, फणिन्द्रभूषण महामल्ला, संतोष श्रीवास, रोहित साहू, श्यामू राम सेन, रोहित चंद्रवंशी, सलमान हैदर, मुकेश टिकरिहा, होरीलाल पटेल, शिवनारायण ताम्रकार, राजेश बिसेन, बाबू भाई अऊ छत्तीसगढ़ भर के अनेकों साहित्यिक अऊ सांस्कृतिक जन उपस्थित रहिन।

वक्ता मन श्री जागेश्वर प्रसाद के दीर्घ संघर्ष अऊ योगदान ला उजागर करत कहिन कि वो छत्तीसगढ़ी अस्मिता के प्रतीक हवंय।

🎙️ राकेश तिवारी कहिन-
"सन 1980 के दसक म जब में रायपुर आंय, तव ले जागेश्वर दादा के सानिध्य म रहंय। ‘छत्तीसगढ़ी सेवक’ म संवाददाता रहत मोर जे भी सांस्कृतिक यात्रा अऊ लेखन म उन्नति होइस, ओकर जड़ म दादा के प्रेरणा हवय।"

🎙️ चंद्रशेखर चकोर कहिन-
"दादा के घर, केवल निवास नइ रहिस, बल्कि उहां छत्तीसगढ़ी संस्कृति के ऊर्जा के केंद्र बन गे रहिस। ए घर ले अनेकों गीतकार, लेखक अऊ कलाकार मन अपन यात्रा शुरू करिन, जे आज छत्तीसगढ़ के संस्कृति म प्रमुख स्थान रखथें।"

🎙️ डा. के.के. अग्रवाल कहिन-
"जागेश्‍वर प्रसाद जी के योगदान एतका बड़ हवय कि प्रदेश के पाठ्यक्रम म वोकर एक प्रतिशत घलो शामिल नइ ये। ए हमन सबके जिम्मेदारी बनथे कि दादा के जीवन अऊ विचार ला आगू पीढ़ी तक पहुँचाय जावय। जेन काम दादा करे हावय ओकर एक प्रतिशत भी पाठ्यक्रम आ जही तो लइका मनके स्‍वाभिमान जागृत होए लग जही।"

🎙️ मुख्य अतिथि अशोक तिवारी कहिन-
"हमर बीच एक अइसे 80 बछर के कर्मयोद्धा हांवय, जउन आज के युवामन ला घलो प्रेरणा देवत हवंय। जब कतको लोग सम्मान अऊ नाम के खातिर काम करथें, जागेश्वर प्रसाद जी मन वो काम बरसों पहिली कर डारिन। दुःख के बात ये आय कि छत्तीसगढ़ के भाषा, संस्कृति अऊ राज्य आंदोलन म जे महान लोगन के योगदान रहिस, ओमन आज गुमनाम हो जथें।
मैं तो यही कहथंव कि हम सब मिलके एही जोश अऊ सम्मान के संग दादा के 100वीं जनमदिन घलो मनाय के तैयारी अभी ले करन। अउ येकर जउन विचार हवंय, ओला हमन नवा पीढ़ी तक पहुँचाय के जिम्मेदारी निभावन।"

🎙️ दाऊ जी.पी. चंद्राकर कहिन-
"जागेश्वर जी म छत्तीसगढ़िया चेतना के प्रति जऊन समर्पण अऊ लगन हवय, वो आज घलो ओही तीव्रता म देखे जाथे। 1960 के दसक म जब गाड़ी-बस के सुविधा नई रहिस, ओ बेरा म दादा सायकल म रायपुर ले बलौदाबाजार, धमतरी, पाटन अऊ दुर्ग तक जाके जनजागरण करेे रहिन।"

🎙️ दादा जागेश्वर प्रसाद कार्यक्रम के अंतिम सत्र म अपन जीवन-संघर्ष के कहानी सुनावत कहिन-
"एक गरीब किसान परिवार म जनम लेके मोला छत्तीसगढ़ महतारी के सेवा के अवसर मिलिस, ए मोर भाग्य हवय। छत्तीसगढ़ राज्य के सपना त जरूर पूरा होइस, फेर ओ सपना के मकसद आज घलो अधूरा हवय। आजो छत्तीसगढ़ी भाषा के संवैधानिक मान्यता नइ मिलिस, सरकारी काम-काज म घलो ओकर उपयोग नई होवत हे। मैं चाहथंव कि जब मोर 100वीं जन्मतिथि मनाय जावय, त ओ बेरा छत्तीसगढ़ के असली स्वाभिमान ला पूरा सम्मान मिल जावय।"

कार्यक्रम के समापन म सबो उपस्थित जन मन एक स्वर म जागेश्वर दादा ला 'छत्तीसगढ़ के जागरन दूत' कहिके सम्मानित करिन अऊ ओखर दीर्घायु, स्वास्थ्य अऊ सक्रियता बर मंगलकामना करिन।

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