येसो के होरी सिनेमा के फगुवा ले होही लाले-लाल...

अंजोर
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सिनेमा में होली गीत


सिनेमा। सिनेमा ह हमर घर-संसार म अतेक भितरी तक घुरगे हवय के अब लागथे के ओकर बिगर जिनगी अधुरा हवय। अइसे कोनो घर नइये जिहां टीवी नइ होही..., अऊ बिगड़थे त अइसे बेचैनी छा जथे मानो कोनो घर के सदस्य बीमार होगे हावय। माने टीवी आज हमर परिवार के हिस्सा होगे हवय। हर सुख-दुख म टीबी बरोबर संग देथे। खास के तिहार म तो अऊ...। सिनेमा पहिली अपन रूवाप म रिहिस, फेर वो लोगन के रूवाप म अइस, अब लोगन मन सिनेमा के रूवाप म उतरगे हवय। केहे के मतलब अब टीवी लोगन ल सीखोत हावय, कइसे रहना हे, का पहिरना हे अउ तीज-तिहार ल कइसे मनाना हवय। छत्तीसगढ़ ही नहीं दुनिया के जिंहा भी सिनेमा के प्रभाव हाबे उहूं कोति इही हाल हवय।

अभी के समे हवय होली तिहार के, होली ल पूरा भारत म मनाये जाथे। होली के मतलब हावय रंग, चमक, मस्ती अउ उमंग। रंग के ए अनोख भारतीय तिहार अउ सिनेमा के खास नता हवय। शायद होलीच वो तिहार हावय जेला बॉलीवुड म ज्यादातर फिलिम निर्माता भुनाथे हावय। कतकोन बॉलीवुड फिल्म गीत के सेती गजब कमई करिस, आजो वोकर लोकप्रियता बनेच हवय। वोमा के कुछ सिनेमा ल देखे तव 1950 के दशक म मेहबूब खान (औरत अउ मदर इंडिया) ले लेके 1970 के दशक म रमेश सिप्पी (शोले) 1980 अउ 1990 के दशक म यश चोपड़ा (सिलसिला अउ डर) ले लेके अभी के बेरा के नवा पीढ़ी म अयान मुखर्जी (वाईजेएचडी) तक कतकोन प्रतिभाशाली निर्देशक के फिल्मोग्राफी म होली गीत रिहिस।

इहां देखव सबले जादा सुने अब देखे जाए वाला हिन्दी सिनेमा के होली गीत-:

1. रंग बरसे - फ़िल्म: सिलसिला
2. होली के दिन - फ़िल्म: शोले
3. सोनी सोनी - फ़िल्म: मोहब्बतें
4. बलम पिचकारी फ़िल्म: ये जवानी है दीवानी
5. होली खेले रघुवीरा - फिल्म: बागबान
6. आज ना छोड़ेंगे - फ़िल्म: कटी पतंग
8. अंग से अंग लगाना - फ़िल्म: डर

इही हाल छत्तीसगढ़ी सिनेमा के तको हवय। सबो परब तिहार म बने-बने गीत लोगन ल देखे सुने बर मिलथे। छत्तीसगढ़ म तो बारो महीना तीज तिहार आथे। सबो के अपन अपन महत्ता हवय लेकिन सबो म गीत-संगीत ह संस्कार के रूप म तिहार ले जुरे हावय। जेन परब के उच्छाह ल दूगुना कर देथे। होली म गांव-गांव के जेन लोकगीत बजथे तेकर तो अलगे महत्ता हावय सिनेमा ओमा के चार आला नइये। लेकिन जन-जन जे पहुंचथे वो सिनेमा के ही गीत आए ये सेती सिनेमा के बढ़ई तको करे बर बरही। अभी के बेरा म कई ठी छत्तीसगढ़ी फिल्म म बहुत बढि़या होली गीत आए हाबे। जेन बेरा-बेरा म बजथे, मनोरंजन करथे, तिहार के महिमा बगराथे।

इही ओढ़र म आरो मिले हवय। फिल्म ‘माई लाल रूद्रा’ म होली गीत- होली के मौका हे.... अउ मोर छइंहा भुंइया 2 म होली गीत- होगेंव मया म बेहाल.... खास होली रिलीज करत हवय। दूनो गीत के रिलीज के जोर-सोर ले प्रचार सोशल मीडिया म होवत हवय। काबर के अवइया 28 मार्च के होली तिहार हवय। छत्तीसगढ़ म होली तो 40 दिन के होथे, बसंत पंचमी ले सुरू हो रंग पंचमी तक माते रिथे। ये बीच गांव म फगुवा के टोली अपन लोकगीत ले सराबोर रिथे। हांलाकि अब लोगन मन शहर म एके-दू दिन के तिहार मनाथे लेकिन अभी भी गांव म बसंत पंचमी के बाद ले ही फाग गीत सुरू कर देथे। सरा ररा भइया के सुनले राम कबीर..., गली-गली म नंगारा के ताल संग सुनावत रिथे।

सिनेमा ह होली तिहार भर नहीं बल्कि सबो परब ल भुनाये के कोशिश करे हावय। केहे जाथे के भारत ह तो परब तिहार वाले देश आए, तव सिनेमा भला कइसे अछुता रहितिस। सिनेमा ह जमके तिहार मनाथे अउ लोगन ल अपन रंग म रंग देथे। भारत के प्रमुख पर्व जनवरी म नव वर्ष, गणतंत्र दिवस, लोहड़ी, थाईपुसम, पोंगल, संक्राति मनाये जाथे। फरवरी म भोगाली बिहु वसंत पंचमी, विश्वकर्मा जयंती आथे। मार्च म महाशिवरात्रि, नवरोज़, होलिका दहन, होली आथे। अइसने अप्रैल म चैत्र नवरात्रि, गुडी पर्व, ऊगड़ी, गणगौर पर्व, महावीर जयन्ती, हनुमान जयंती, रामनवमी, पास ओवर, गुडफ्राइडे, ईस्टर मनाये जाथे। मई महीना म शबे बारात, गुरु पूर्णिमा, बुद्ध जयंती, बैशाखी, रंगाली बिहू, अक्षय तृतीया, महर्षि परशुराम जयंती आथे। जून महीना म रथयात्रा अउ अगस्त म नागपंचमी आथे। अइसने अगस्त जन्माष्टमी, स्वतंत्रता दिवस, गणेश चतुर्थी, राखी, ओणम आथे। सितम्बर म नवरात्रि, दशहरा, शरद पूर्णिमा आथे। अक्टूबर म करवा चौथ, देव प्रबोधिनी एकादशी। नवंबर महीना म धनतेरस, दीपावली, गोवर्धन पूजा, यम द्वितीया (भाई दूज), गुरु पर्व, छठ पूजा मनाथन। अउ दिसम्बर म क्रिसमस जइसन तिहार मनाथन। हालांकि सबो तिहार ल भारत के सबो प्रांत म नइ मनाये जावय अउ न ही सबो लोगन मनाथे। अपन-अपन परब संस्कृति अउ धरम के मुताबि‍क लोगन म बंटे हावय।

लेकिन येमा सबले बड़का बात हे के सिनेमा सबो कोति बगरे हवय। सबो समाज धरम के मनखे मन सिनेमा म हवय, सिनेमा के देखइया हावय। बस इही बात के फायदा सिनेमा ल मिलथे। फेर तो का पुछत हस सबो कोनो अपन-अपन परब तिहार ल सिनेमा म परोसे लगथे। सिनेमा कतकोन बने बुता करय तभो कहीं न कही अपन बेवसाय के सेती थोक बहुत गलत परंपरा तको सिनेमा ले घर-घर तक पहुंच जथे। हमन ल इही अवगुन ल दुरिहावत, गुन के गुनगान करवना हवय अउ अवइया पीढ़ी ल तको इही सीखना हवय।
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