विचार: छत्तीसगढ़ के नदी म गंगा आरती..., कतका सही

अंजोर
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गंगा आरती


हमर देश के धरम-करम अउ भक्ति कोन जनी कति जात हावय ते। जेन ल नइ सुने रेहेन तेन ल आंखी म देखे ल परत हाबे। अभी राजिम के मेला लगे हावय। तइहा जुग ले माघी पुन्नी ले महाशिवरात्री तक पाख भरके मेला भरावत आवथे। अब तो राजिम के मेला ह ‘कल्प कुम्भ’ होगे हावय। खैर बेरा बखत सवांगा चड़त उतरत रिथे। लोगन मनके आस्था तो उहिच हाबे। ये बीच एक बात सुनई अइस के महानदी म ‘गंगा आरती’ होही। बनेच हे गंगाजी ल सबसे पबरित नदिया माने जाथे, फेर ये तो प्रयागराज इलाहाबाद म हावय... इहां महानदी म कइसे ‘गंगा आरती’ होही? महानदी आरती होतिस त बात फबतिस।

छत्तीसगढ़ म गंगा आरती के चलागन शुरू कुछ बच्छर ले होगे हाबे। रायपुर के खारून नदी म कुछ लोगन मन जबर आयोजन करके, बड़का बड़का मंतरी-संतरी अउ कलाकार मनला बलाके गंगा आरती कराइस। खारून नदी म ‘गंगा आरती’..., खारून आरती काबर नहीं? बिलासपुर के अरपा नदी म तको जबर जलसा करके लोगन मन नदी घाट म संझा के बेरा बिकराल रूप म ‘गंगा आरती’ के आयोजन करिस। बिलासपुर के अरपा नदी म होइस त अरपा आरती होना रिहिस लेकिन उहो ‘गंगा आरती’ करे गिस।

ये उदीम धरम-करम अउ भाव-भक्ति म रमे लोगन बर तो बने बात हे। ले कांही नइ होवय, नदी के तो आरती होइस। ...अऊ हमर इहां के छत्तीसगढि़या मनखे मन आसानी ले स्वीकार तको लेथे। लेकिन का गंगाजी म जा के खारून आरती..., अरपा आरती..., महानदी आरती..., शिवनाथ आरती करे जाही। ले भई गंगा नदी म नइ करेस, त का देश के अउ बड़का नदी मन म छत्तीसगढ़ के खारून आरती, अरपा आरती, महानदी आरती होही? अचंभो लागथे छत्तीसगढ़ के नदी मन म गंगा आरती होवत देखके।

जय हो गंगा मइया जिहां जिहां पानी तिहां तिहां गंगा मइया। गंगा के महिमा छत्तीसगढ़ म कोनो कम नइये, इहां लोगन मन तिरथ करे बर गंगाजी जाथे। गंगाजल ले कुटुम ल तारथे, गंगाबारू बदथे, गंगाजल के किरिया खाथे। इहां तक के चार समाज ल तको ‘समाज-गंगा’ कइके पैलगी करथे। जब अतका मानता हावय गंगाजी के त इहां के नदी म अऊ गंगा आरती करे के का भेद हे। आज भले गुनी गियानी मनला ये बात म कोनो एतराज नइये के छत्तीसगढ़ के नदिया मन म ‘गंगा आरती’ करे जावथे। बल्कि गंगा आरती म शामिल तको होवथे। खारून के घाट म गंगाजी के जयकारा, अरपा के घाट म गंगा जी के जयकारा अउ महानदी के घाट म तको गंगाजी के जयकारा।

असल बात के मरम ल जाने जाए त ये एक बड़का साजिस होवथे मूल चिन्हारी ल मेटे के। धरम अउ भक्ति के नाम म चिन्हारी मिटाये के गिरोह छत्तीसगढ़ म बड़ गहिर तक खुसरगे हावय। बाहरी मनखे मन इहां आके अपन देवधामी ल स्थापित करिस। हमर राज म अपन देवधामी ल मानिस, चलो भगवान के नाम म वहू मंजूर हे। लेकिन दूसर के चिन्हारी ल मेट देना, मेटे के उदीम करना, येतो दोगलाई आए। जेन ह चिन्हारी मेटे के बीजहा जमोइस, धरम अउ आस्था के नाम म छत्तीसगढि़या मनला अतका बिलहोर दिस के हमरो नता-गोतर मन अब उंकरे पिछलग्गू बनके अपन समूल विनाश के उदीम करत हाबे। 

बात भले आज नानकून हाबे के छत्तीसगढ़ के नदिया म गंगाजी के आरती होइस। ये एक नवा परंपरा के शुरूआत आए। ए साल होइस, अवइया साल होही अऊ ताहन ये एक परंपरा बन जही। अवइया नवा पीढ़ी इही ल अपन, अऊ धीरे धीरे ये तरिया नरूवा डोढ़गी म तको गंगा आरती के परंपरा शुरू हो जही। ताहन भइगे, मेटागे हमर मूल चिन्हारी खारून, अरपा, शिवनाथ अउ महानदी के नाम ह। एक दिन अइसे आ जही के लोगन मन सिरिफ गंगाजी ल जानही। तब फेर इतिहासकार मन खारून, अरपा, शिवनाथ अउ महानदी के किस्सा सुनाही। 

गंगा के अपन अलग महिमा हे, लोगन उनला सम्मान से गंगाजी कहिथे, ये बात ल तो दुनिया जानथे। भारत के नदी मन म सबले जादा मानता गंगा नदी के हाबे। गंगा नदी ह सिरिफ एक नदी भर नोहय बल्कि जन-जन के आस्था के आधार आए। लोगन उनला गंगा मइया किथे। जलदेवकी ह जीयत-मरत सबो ल तार देथे। अऊ ये बात ल सबो जानथे के गंगाजी ह उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद म हाबे। इहंचे संगम हाबे गंगा, जमुना, सरस्वती के। लोगन मन तिरथ करे बर उहां जाथे गंगा स्नान करके पुन कमाथे, गंगाजल लानके कुटुम परिवार ल तारथे। पुरखा सियान के बिते मा अस्थि विसर्जन, पिंडा, तरपन कराथे।

फेर सबो आदमी गंगा जाही तभे तरही अइसे घलोक नइये। यथा शक्ति लोगन मन अपन-अपन तिर के नदिया मन म तको तरन-तारन के उदीम करथे। नदिया तो सबो पबरित हे। जलदेवकी छोटे-बड़े सबो के पाप ल धो देथे। अइसे किरिया नइये के गंगाजी म आही तभे तिरथ-बरथ कहाही, पुरखा तरही, हाड़ा सरही।

रायपुर के तिर तको बड़का नदी हे जेला खारून नदी के नाम ले जाने जाथे। मनखे मन खारून नदी म जाके तको पुन कमाथे। धरम-करम करथे, देवधामी के दरस करथे। जेन कारज गंगाजी म जाके लोगन मन करथे उही बुता खारून नदी म तको हो जथे। लोगन मन अस्थि विसर्जन (हाड़ा सरोये) बर खारून नदी म आथे। पुन्नी नहाथे। पिण्डा पढ़ाथे। तरपन करथे। मुंडन कराथे। इहां के राजिम ल तो छत्तीसगढ़ के प्रयाग कहे जाथे। राजिम म तको तीन नदिया के संगम बताये जाथे। इतिहास म बड़ नाम हाबे राजिम धाम के। राजिम के महानदी ल छत्तीसगढ़ के जीवनदायनी कहे जाथे। इही नदी म भगवान राम के आये के आरो मिलथे, कतको रिसी मुनी मनके तपोभूमि आए। महानदी म छत्तीसगढ़ ही नहीं ओडि़सा के मन तको अस्थि विसर्जन, पिण्डा, तरपन संग तिरथ-बरथ करे बर आथे। इहां के तिरबेनी के पानी ल लेगथे अउ कुटुम ल तारथे। अइसने बिलासपुर कोति के मनखे मन शिवनाथ, अरपा, कोसिर सहित केऊ ठी नदी मन म धरम-करम के बुता ल उरकाथे।

सबो नदी मनके अपन-अपन महत्ता अउ बिसेसता हाबे, कोनो ल कमती त कोनो ल जादा के तराजू म नइ तउलना चाही। धरम-करम कहीं जाए पानी ले जीनगानी हे इही बात ल सोला आना माने जाना चाही। गंगाजी ल तो देश-दुनिया जानथे फेर हमर खारून, अरपा, शिवनाथ अउ महानदी के नानकून चिन्हारी ल आरूग राखे जाय इही गेलौली हे। जय गंगा मइया संग जय खारून, जय अरपा, जय महानदी... अऊ सबो नदी के जय जयकार।

संपादकीय
-  जयंत साहू, रायपुर छत्तीसगढ़

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