बद्रीबिशाल परमानंद संत कोटि के अलमस्त कवि : सुशील भोले

अंजोर
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जेन मनखे के रचना मन भले कभू पत्र-पत्रिका के मुंह नइ देखिन, फेर लोगन के कंठ म बिना वोकर रचनाकार के नांव जाने बइठिस अउ सुर धर के निकलिस, उही तो लोककवि होइस। सन् 1917 के रथयात्रा परब के दिन रायपुर जिला के गाँव छतौना (मंदिर हसौद) म महतारी फुलबाई अउ ददा रामचरण यदु जी के घर जनमे बद्रीबिशाल यदु 'परमानंद' जी के संग अइसने होए हे। उनला उंकर जीयत काल म ही लोककवि के रूप म चिन्हारी मिलगे रिहिसे।

वोकर लोकप्रियता अतेक रिहिसे, जेला देख के हमूं मनला गरब होवय। मोला सुरता हे, बसंत पंचमी के दिन हर बछर गुरु पूजा के रूप म उंकर सम्मान होवय। पूरा छत्तीसगढ़ म चारों मुड़ा सैकड़ों के संख्या म बगरे उंकर चेला मन अपन-अपन मंडली संग सकलावयं। हर बछर ए आयोजन ह अलग-अलग जगा म होवय, तेकर सेती मैं दुरिहा वाले आयोजन म तो नइ जा सकत रेहेंव, फेर भांठागांव म दू-चार बखत संघरे रेहेंव। 

वो बखत के लोकप्रिय गायक केदार यादव, साधना यादव, कुलेश्वर ताम्रकार, छन्नू यादव, नरेश निर्मलकर जइसन कतकों नवा अउ जुन्ना गायक-गायिका मन परमानंद जी के पूजा-सम्मान करयं अउ रात भर उंकरेच लिखे गीत मन के प्रस्तुति देवयं। परमानंद जी के संग म हमर मन असन नेवरिया मनला ल घलो उंकर संग मंच म बइठार के गुरु-पूजा के सम्मान देवयं।

सन् 1947-48 म परमानंद जी स्व. हनुमान प्रसाद यदु जी ले साहित्य विशारद के शिक्षा लिए रिहिन हें। तब हरि ठाकुर, देवीप्रसाद वर्मा 'बच्चू जांजगिरी जइसन साहित्यकार मन उंकर गुरु-भाई रिहिन। परमानंद जी माटी के कवि रिहिन। उंकर रचना मन म छत्तीसगढ़ माटी के महक जनाथे। भले उन रायपुर जइसन शहर म रहंय, फेर ग्रामीण संस्कार अउ परिवेश ह उंकर गीत म सांस लेवय। बसंत के आगमन म लिखे एक गीत देखव-

मातगे हे सरसों के फूल, गंधिरवा मातगे हे रे..
मातगे हे परसा, मातगे हे कउहा
अरसी के झूल माते, गहूं के घूल माते
तिंवरा के लाज गे हे रे
गंधिरवा मातगे हे रे..
बसंत के ये प्राकृतिक मादकता बेरा म लइका, सियान, जवान सब मदमस्त होगे हें, देखव-
मातगे हे लइका मन गुदु-गुदु हांसी
मातगे बुढुवा घलो लागे खुदबुदासी
झुमर झुमर झुमर झुमर माते जवानी
सुवा पड़की नाचगे हे रे..
गंधिरवा मातगे हे रे..
किसान के दुख-पीरा ल समझत कवि वोकर जोहार करत कहिथे-
तोला बंदव हो,
तोला संवरंव हो, मोर नगरिहा देवता.
मोर अलकरहा, मोर बलकरहा
तोर भरोसा तीन परोसा दुनिया ह खाथे नेवता..
* * * * *
नगरिहा नइ उपजय तोर बिन धान.
धरती पूजीं, धरती रुजीं धरती पूत किसान.
दाई के थन म दूध भरे हे
लइका बर भगवान गढ़े हे
तइसे तोला गढ़ के भेजिस
भुइंया बर भगवान..
परमानंद जी के नांव ले सैकड़ों भजन अउ फाग मंडली रिहिस, जेकर बर उन भजन के संगे-संग फाग घलो लिखंय। उंकर लिखे कतकों फाग मन आज घलो जनमानस म व्याप्त हे, जेला लोगन पारंपरिक गीत या फाग के रूप म गावत रहिथें-
एक गीत म देखव, गोप बाला दही बेचे बर निकले हे, अउ कन्हैया वोला छेंक के दही मांगत हे-
मांगे कन्हैया माखन देबे का वो 
नहीं नहीं काहत वो हां हां म आगे.
दही बेचत बेचत दही वाली बेचागे..

परमानंद जी सैकड़ों के संख्या म गीत, भजन अउ फाग लिखिन, फेर कभू वोला सकेल के नइ राखिन। मैं तो कतकों बेर अइसनो देखे हौं, कोनो उंकर चेला या गायक कलाकार रचना मांगे बर या लिखवाए बर आए राहय, वोला वो लिख के ओरिजिनल प्रति ल ही दे देवत रिहिन हे। न वोकर दूसरा प्रति बनावय, न अउ कुछू करय। एकरे सेती उंकर रचना मन के बारे म निश्चित कह पाना कठिन हे, के उन कतेक लिखिन, कोन-कोन संदर्भ म लिखिन। एकदम फक्कड़ किसम के संत मन होथें न, न कुछू के चिंता न फिकर। बस अपन म मस्त। तभो ले उंकर मंडली अउ चेला मन जगा ले खोज-निमार के 45 ठन रचना मनला छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति डहार ले 'पिंवरी लिखे तोर भाग' के नांव ले एक संकलन के रूप म निकाले गे हे।

अइसने सब परिस्थिति के सेती परमानंद जी के कतकों रचना मन के बारे म लोगन ए नइ जानंय, के वो काकर लिखे आय। मैं तो इहाँ तक देखे हौं। धमतरी क्षेत्र एक कवि सम्मेलन म उहिच डहार के एक झन कवि ह परमानंद जी के गीत ल अपन रचना आय कहिके मंच म बड़ा शान से पढ़त रिहिसे। संयोग ले महूं वो मंच म आमंत्रित कवि के रूप म उपस्थित रेहेंव।

परमानंद जी जिनगी के आखिरी बेरा म थोरिक बनेच शारीरिक कष्ट पाइन हें। वइसे ए बात ल मैं आध्यात्मिक मनखे होय के सेती समझथौं, काबर ते ऊपर वाला जेला मोक्ष या सद्गति देथे, वोकर पिछला जनम मन के हिसाब-किताब ल बरोबर करे बर जिनगी म कुछ अइसन तकलीफ के बेरा देथे। अध्यात्म म इही ल 'प्रारब्ध भोग' केहे गे हे। प्रारब्ध भोग ल पूरा करे बिना कोनो भी मनखे ल सद्गति नइ मिलय। 

परमानंद जी 11 मई 1993 के ए दुनिया ले बिदागरी ले लेइन। जब उंकर सरग सिधारे के खबर वोकर मंडली के लोगन ल मिलिस, त उनला भजन-कीर्तन करत अंतिम यात्रा म लेगे के व्यवस्था करे गिस। रायपुर के रामकुंड म आमा तरिया हे, एकरे पार म उनला स्थान दिए गइस। वतका बखत महूं वो जगा उपस्थित रेहेंव। तब दू किसम के विचार चलत रिहिसे, के उनला समाधि दिए जाय दाह संस्कार करे जाय। 

कतकों झन कहंय, के उंकर जिनगी तो एक संत बरोबर रेहे हे, तेकर सेती उनला समाधि देना उचित रइही। कतकों दाह संस्कार कर के वो जगा स्मारक बनाय के बात काहंय। आखिर म दाह संस्कार कर के उही जगा म चबूतरा बनाए के निर्णय लिए गइस। आज वो चबूतरा ल 'परमानंद चबूतरा' के नांव म लोगन जानथें। कोनो परब-विशेष म उंकर चेला मन वोमा दीया-अगरबत्ती कर नरियर-फूल चढ़ा के उंकर आशीर्वाद लेवत रहिथें। उंकर सुरता ल डंडासरन पैलगी...

-सुशील भोले, संजय नगर, रायपुर मो. 9826992811

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