Basant Panchami 2022 : बगरत बसंत बहार..., लेखक- कन्हैया साहू 'अमित'

अंजोर
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बसंत पंचमी निबंध
Basant Panchami 2022

माघ महीना के अंजोरी पाख के पंचमी के दिन ले बसंत के बङ जोरदरहा सुवागत होथे, मंगल उतसव होथे, तिहार बरोबर उछाह होथे। बसंत हा हमर भारत देश के छै रितु मा के एक ठन रितु हरय जउन हा फरवरी, मार्च अउ अप्रेल के बीच मा अपन सुघरई ला बगराथे। ए बसंत पंचमी के तिहार हा परकीरति के पूजा-पाठ के तिहार हरय। सरी समे सुन्दर दिखई देवइया परकीरति हा बसंत रितु मा अपन सोला सिंगार अउ सोला कला ले सज-संवर के सबके मन ला मोहे बर तियार हो जाथे। चुक-चुक ले दिखे ला धर लेथे। जइसे ए जिनगी के मा जवानी हा सबके बसंत काल होथे वइसने ए बसंत हा परकीरति के भरे जवानी होथे। सबो परानी,जीव अउ जीनिस के जवानी बेरा हा सबले सोनहा समे होथे। इही सोनहा समे हा बसंत कहाथे, बसंत असन लागथे।

बसंत के परघनी माघ महीना के अंजोरी पाख के पंचमी मा होथे अउ फागुन के संग चइत महीना मा घलाव बसंत के रंग मा रंगे रथे। फागुन महीना हिन्दू पंचांग के आखिरी अउ चइत महीना हा पहिली महीना होथे। ए प्रकार हमर हिन्दू पंचांग मा बच्छर के छेवर अउ पहिलाँवत महीना हा बसन्त रितु मा ही परथे। बसन्त के अघुवा गरमी हा होथे अउ जङकाला के जाङ हा अपन ओढ़ना दसना ला लपेट के भागे ला धर लेथे। मउसम बङ सुग्घर दिखे ला धर लेथे। जाङ मा घुरघुराय, कोचराय अउ अइलाय परे ए तन-मन मा बसंत हा नवा जोस, नवा उरजा, नवा उमीद अउ नवा आसा बनके संचर जाथे। अइसे लागथे के अंधरा ला आँखी मिलगे। जिनगी ला पाँखी मिल जाथे अउ उङियाय ला धर लेथे। चारों खुँट सरी जीनिस हा नवा-नेवरिया कस दिखे ला धर लेथे। परकीरति हा कोनो नवा दुलहिन सरीख सिंगार करे दिखे ला धर लेथे। रुख-राई मा कोंवर-कोंवर नवा पाना-डारा उलहोय ला धर लेथे। आमा मा मउर आ जाथे। खेत-खार मा सरसो के पिंयर-पिंयर फूल मात जाथे। मउहा हा महर-महर ममहाय लगथे,परसा फूल, सेमरा फूल मन हा अपन सुघरई ले मन ला मोहे ला लागथे। परकीरति मा चारों खुँट हाँसी-खुसी, मया, पिरीत, आसा अउ बिसवास के रंग हा नंगत बगर जाथे। जम्मो परानी बसंत के रंग-ढ़ंग ला देख के राग-रंग के उच्छल-मंगल मा बूङ जाथें। रंग-बिरंगी समे मा  सबो सराबोर हो जाथे। एखरे सेती सबले सुग्घर ए बसन्त के समे  ला रितुराज कहे जाथे।

हमर पुरखा-पुरखा ले बसन्त उतसव के तिहार-बहार ला परमपरा के रुप मा मनावत आवत हाँवय। एखर जघा-जघा प्रमान घलाव मिलथे। पहिली जमाना मा एला मदन उतसव अउ कामदेव उतसव के रुप मा घलाव मनाय जावत रहीस। धीरे-धीरे बसंत पंचमी के दिन बसंत उतसव मनाय ला धर लीन। पुरानिक कथा के हिसाब ले बसन्त हा रुप अउ कला के देवता कामदेव के बेटा हरय। रुप-रंग, सिंगार अउ सुघरई के सुवामी कामदेव के घर बेटा पइदा होय के समाचार ला पा के सरी परकीरति हा खुसी के मारे झुमे-नाचे लागथे। रुख-राई मन हा नवा-नवा पाना के पालना बनाथे, रिंगी-चिंगी फूल मन हा नेवरिया के अंगरक्खा बनाथे, हवा-पुरवाही हा लइका के पालना ला झुलाथे अउ कोइली हा नवा-नवा गुरतुर गीत गा-गा के मन ला मोहथे। ए प्रकार सरी परकीरति हा बसन्त के सुवागत मा भिंङ जाथे। एखरे सेती बसंत पंचमी ला बसंत पंचमी के दिन बसंत उतसव मनाय जाथे।

बसन्त रितु मा बसन्त पंचमी के संगे-संग शिवरात्रि अउ होरी के परब मनाय जाथे। भारतीय कला अउ संस्कीरति मा बसन्त के घातेच महत्तम हावय। सास्तरीय संगीत मा भारतीय सइली के एकठन राग के नाँव बसंत राग हावय। बसंत राग ला बिसेस रुप मा बसन्त रितु मा गाये अउ बजाये जाथे। बसन्त राग हा होरी तिहार मा सबले जादा देखे-सुने ला मिलथे। ए राग हा खुसी हा उछाह के राग हरय। बसन्त राग ला गाये, बजाये अउ सुने ले मन हा मगन ह़ो जाथे। ए प्रकार बसंत रितु हा हिरदे मा आनंद, हाँसी-खुसी, उमंग, उछाह ला कोचकिच ले भरथे, आलस अउ हदास ला हरथे। बसन्त हा मगन रहे अउ मगन राखे के परब आय। बसंत के मउसम मा परकीरति के पाँच तत्व पानी, हवा, धरती, अकास अउ अगनी सबो कपन प्रकोप ला तियाग के एक नवा अउ मनमोहना रुप-रंग मा प्रगट हो जाथे। ए पाँच तत्व मन हा अपन अलगेच सान्त सहज अउ सरल रुप ला देखाथे।

बसन्त रितु मा परकीरति हा बसन्ती रंग मा बूङ जाथे। बसन्त पंचमी मा सरी संसार भर के सरी जीनिस हा पिंयर-पिंयर दिखे ला धर लेथे। परकीरति हा पिंयर रंग मा रंगा हे अइसे लागथे। सरसो के पिंयर-पिंयर फूल सोन सहीं दिखथे, धरती के ओन्हा हा पिंयर ह़ जाथे। बसन्त के परघनी मा परकीरति हा पिंयर-पिंयर रंग मा चुकचुक ले चमके लगथे। पिंयर रंग हा सत अउ सुद्धता के प्रतीक हरय। खान-पान मा घलाव पिंयर रंग के महत्तम बसंत रितु मा बाढ जाथे। पिंयर भात-दार,पिंयर लाडू अउ केसर मिले पिंयर खीर के जादा सेवन करे जाथे ए मउसम मा। पूजा-पाठ मा पिंयर रंग अउ मंदिर मा पिंयर रंग के भरपुरहा भोग चढथे बसंत रितु मा। बसंत पंचमी मा संगीत,साहित, कला, ग्यान अउ बिगियान के देवइया दाई सरसती के पूजा-अरचना मा सुभ फल पाये खातिर घलाव पिंयर फूल ला चढ़ाय जाथे। पिंयर फल अउ पिंयर-पिंयर बून्दी के भोग लगाय जाथे। ए प्रकार बसन्त के पिंयर रंग हा मनखे के तन अउ मन ला प्रसन्न कर देथे।

बसंत के महत्तम हमर जिनगी मा नंगत हावय। बसंत आस अउ बिसवास, भक्ति अउ सक्ति के चिन्हारी हरय। बसंत के मयारु हा कभू अपन जिनगी मा हतास नइ होवँय। जइसे पतझर मा रूख-राई ले जम्मो पाना मन झर जाथे फेर अउ नवा-नवा पाना उलहोथे,हरियर हो जाथे वइसने ए जिनगी मा दुख-पीरा अउ हतासा के पाना-डारा झर के सुग्घर सुख अउ सान्ति के नवा उमीद के पाना फोकियाथे। सबले सरेस्ठ अउ बलकर ए परकीरति हा कभूच गरब-गुमान नइ करय,सरी जिनगी ला परहित मा लगाथे। जम्मो परानी मन बर सरी मया ला लुटाथे। हमर खुसी मा शीत के नान्हें बून्द बनके मुसकाथे अउ दुख के बेरा मा पाना-डारा ला गिराके सुखाथे। हमर जिनगी के रंग मा ए परकीरति हा रंगे जइसन दिखथे। जइसन सोंचथन,जइसन करम करथन वइसन ए परकीरति हमला दिखथे। परकीरति के सरी मया हमरे बर हे अइसे लागथे। परभु के परेम के नाँव परकीरति हरय,परभु के परेम पाये बर परकीरति ले परेम करना चाही। इही परकीरति के सबले मयारु पुत बसंत हा हरय। बसंत जउन हा अमंगल ला मंगल, निरासा ला आसा मा बदलथे। जउन हा जिनगी अउ बसंत ला एकमई कर लेथे उही ला हमर संस्कीरति हा संत कहीथे,अउ जेन अपन जिनगी मा बसंत लानथे उही हा संत हरय। बसंत मा उछाह के, उमंग के अउ आस अउ बिसवास के कभू कोनो कमी नइ होवय।

* कन्हैया साहू '"अमित', भाटापारा (छ.ग.)
संपर्क 9200252055

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