कइसे करहु पापा मेहा , तोर बिना काज।।
ऊँगली पकड़ के तेहा , मोला रेंगे ला सिखायेस।
एक कनी घुस्सा हो जाओ , आके मोला मनायेस।।
तही मोर गुरु हरस , तही हरस मोर संगवारी।
तोर बिना सुन्ना होगे पापा , आज मोर दुवारी।।
*माटी* तोर नाम हे , आज माटी में मिल गेस।
सब कुछ मोला ते दे देस , मोर से कुछु नइ लेस।।
हाथ धरके मोर तेहा , कविता लिखे ल सीखायेस।
अपन बेटी ल आज पापा , कवि ते बनायेस।।
हर जनम में तेहा पापा , मोरे करा अब आबे।
मोला छोड़ के *माटी* , दूसर करा झन जाबे।।
माटी के मेहा बेटी हरो , पकड़े रेहेस मोर हाथ ।
छोड़ के काबर चल देस , आज तेहा मोर साथ।।
तही मोर संगी साथी , तही रेहेस मोर सँगवारी।
सुन्ना करके चल देस पापा , आज मोर दुवारी।।
कोन ल बताहूँ मेहा , अपन मन के बात ल।
अकेला होगेंव पापा मेहा , कइसे बिताहूँ रात ल।।
अब्बड़ सुरता आवत हे , पापा तोर आज।
कइसे करहु पापा मेहा , तोर बिना काज।।
0 प्रिया देवांगन ‘प्रियू’ पंडरिया, छत्तीसगढ़
बधाई जयंत भाई!!बरछाबारी अउ चौपाल में आपके रचना पढन।लेखन से समाचार पत्र तक के सफर बर बधाई
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