अंजोर छत्तीसगढ़ी मासिक पत्र के जून-जुलाई अंक- page-6

अंजोर
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कानफोड़ू बाजा अउ फटाका के कला संस्कृति

कोनो कला हर, सिरिफ कला माने, मन बहलाए के साधन होथे, वोकर असर समाज म कुछु नइ होय, वोकर उमर बहुत कम होथे। कलाकार के संग वोकर कला घलो नंदा जाथे। कला म मंजा-आनंद के संगे-संग, सिक्छा संस्कार सदगुन सद्भाव भरे के असर हर, कला अउ कलाकार ल, वोकर नइ रहे के बाद घलो जिंदा रखथे। अइसे देखे सुने म आथे। कला जिनगी के चमक, रंग-ढंग, कहे-बोले, गढ़े मढ़े, हाव-भाव, रूप सिंगार, माने ईसवर के सारी रचना म अपने आप समाए रथे। फेर साहित, गीत कविता संगीत ल जिंदा जादू-मंतर माने जाथे। निरास के मन म आसा जगा देना, रोवत ल हंसा देना, जइसे अचरित काम, कला के बल म होथे। गीत-संगीत कविता साहित बिना, समाज अउ देस राज के सही पहिचान नइ होय। ए संसार हर कइसे रहिस, कइसे होगे। संसार भर के साहित रचना हर सिरिफ गीत कविता म पहिली रहिस। आज बड़े-बड़े लेख, गोठ बात कहिनी म समा जात हे। जेन बने रथे वोही ल बिगाड़े जाथे। बिगड़े हर अउ का बिगड़ही?
हमर देस के राज के गीत संगीत म, साहित कला म भारी असर रहिस। विदेसी मन एकर परभाव ल कम करे बर, अपन कला जेन सिरिफ कला माने मन बहलाए के होथे, भारत देस के गांव-बस्ती म बगरा दिन। विदेसी मन अपन बर जीथें, अउ हमर देसी विचार वाले कला म दूसर बर जीना सिखाथे। हमर वेद पुरान मन, रिन माने उधार करजा लेना ल भारी पाप बरोबर मानै, जेन एक बेर करजा-बोड़ी के चक्कर म फंस जाय, वो कभू नइ उबर पाय। आज वो बिगड़े मिजाज के विदेसी चारबांक के 'शरणं कृत्वा धृतं पिवेतÓ हर हमर सतियानास करत हे। कोनो देस बिना कारज के आगू नइ बढ़ सके, अइसे विचार भारती खोपड़ी म लादत हे।
कला के नाम म धांय ढुसुम, बम फटाका, हल्ला गुल्ला, हांय कांय कोई कुछू समझ न पांय। अइसे कला के विकास होत हे, कइसे देस राज के हमर संस्कारित समाज ल बिना सोच बिचार के घुरवा, माने कचरा के भरका बनाए के उपाय होत हे। फटाका फोड़ना अब हमर मनोरंजन के अउ उत्सो जलसा के साधन हे। देवी-देवता के मंडप चकाचौंध सजावट मन हमर आनंद के अधार होत हे। डीजे कानफोड़ू बाजा बिना अब कोनो धार्मिक सामाजिक जुलुस नइ निकलय। कला जेन मनखे के जिनगी के चमक अउ हिरदे के गमक रहिस, वो नदांगे अउ सिरिफ दिखावा अउ सवांगा म कला सिरिफ कला बर, कलंक बनके मनखे के जिनगी के धेय ल भटकात हे। 
- लक्ष्मण मस्तुरिया, रायपुर 


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